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Tuesday, 31 March 2020

पोलीहाउस : खेती और सब्सिडी

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम पोलीहाउस खेती के लाभ और सब्सिडी के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

पोलीहाउस
अगर आप खेती को पेशे के रूप में अपनाना चाहते हैं, तो पॉलीहाउस खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है।  पॉलीहाउस खेती आप कम या सीमित जमीन में सालाना लाखों रुपए कमा सकते हैं। और फसले खराब मौसम, बारिश या अन्य जानवरों से पूरी तरह से सुरक्षित रखने के साथ परम्परागत खेती में बदलाव कर अधिक गुणा लाभ कमा सकते है।  पॉलीहाउस में उगाए गयी सब्जी या फल उत्पाद में गुणवत्ता बहुत अच्छी होने के कारण बाजार में बेहतर कीमत मिलती है।

पोलीहाउस खेती

क्या है पॉलीहाउस
 पॉलीघर या पॉलीहाउस पॉलीथीन से बना एक सुरक्षात्मक शेड हाउस है जिसका उपयोग उच्च मूल्य के कृषि उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है।  यह अर्धवृत्ताकार, वर्गाकार या लम्बा हो सकता है।  इसमें स्थापित उपकरणों की सहायता से गर्मी, आर्द्रता, प्रकाश आदि को नियंत्रित किया जाता है।

स्वचालित प्रणालियों की मदद से तापमान और उच्च लाभ के कारण लोग पॉलीहाउस खेती की ओर रुझान कर रहे हैं। खुले खेतों में पारंपरिक खेती में हमेशा अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों और कीटों और बीमारियां आने का जोखिम होता है। 
अधिकांश लोग पोलीहाउस निर्माण के लिए होने वाले खर्च देखकर पोलीहाउस निर्माण नहीं कराते। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि केन्द्र सरकार और बागवानी विभाग पोलीहाउस निर्माण के लिए 50-60% तक की सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं। और बैंक भी लोन देकर बढ़ावा दे रहे हैं। 

पोलीहाउस खेती के लाभ :
• पोलीहाउस फसल को किसी भी मौसम में सही वातावरण सुविधा उपलब्ध कराने में मदद करता है। 
 • फसलों व फूलो को मौसम के आधार विशेष मौसम का इंतजार ना कर वर्ष भर उगाई जा सकती हैं।  
• पॉलीहाउस खेती में कीट और बीमारियां लगने के आसार कम ही होते हैं। जिसमे फसल के नुकसान या क्षति की संभावना कम हो जाती है।
• जैविक खेती करने वाले कृषकों के लिए खासतौर पर पॉलीहाउस बहुत फायदेमंद होता है। 
• पौधों की वृद्धि पर बाहरी जलवायु का प्रभाव नहीं पड़ता है। 
• पॉलीहाउस में उत्पादन की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से अधिक है। 
 • पारम्परिक खेती की तुलना में उपज की गुणवत्ता अधिक है।
 • पॉलीहाउस में हमेशा बेहतर जल निकासी और बेहतर पौधों के विकास के लिए वातन प्रणाली होती है। 
 • ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिंचाई की मदद से उर्वरक प्रयोग आसान हो जाता है।  
 • पॉलीहाउस की खेती, फसल की देखभाल, उत्पादों की ग्रेडिंग प्रणाली कार्य आसान हो जाता है। 

पोलीहाउस खेती के प्रकार 

पोलीहाउस पर्यावरण के आधार पर दो प्रकार के होते हैं। 
1. प्राकृतिक रूप से हवादार पोलीहाउस 
2. पर्यावरण नियंत्रण पोलीहाउस 

1. प्राकृतिक रूप से हवादार पोलीहाउस  : इन पोलीहाउस में कोई विशेष पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली नहीं होती। प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस का उद्देश्य पौधों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से बचाने के लिए है।

2. पर्यावरण नियंत्रण पोलीहाउस  : इस प्रकार के पोलीहाउस वर्ष भर फसलों की उगाने के लिए तापमान , आद्रता जैसे पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली उपलब्ध कराते हैं। 

पोलीहाउस की 3 श्रेणी होती है। 
1. लॉ टेक(कम लागत) पोलीहाउस सिस्टम
2. मिडियम/ मध्यम टेक पोलीहाउस सिस्टम
3. हाई टेक पोलीहाउस सिस्टम 

पोलीहाउस लागत और सब्सिडी 
 पॉलीहाउस निर्माण की लागत मूल आकार और आकार, संरचना (जीआई / स्टील या लकड़ी) और पॉलीहाउस के प्रकार (पर्यावरण नियंत्रित या स्वाभाविक रूप से हवादार) पर निर्भर करती है।

पॉलीहाउस की लागत आपके द्वारा चुने गए सिस्टम और निर्माण क्षेत्र पर निर्भर करती है। जिसकी अनुमानित लागत क्षेत्रानुसार बदल सकती है। 
•  कम लागत / कम तकनीक वाले पॉलीहाउस के लिए फैनलेस सिस्टम और कूलिंग पैड सिस्टम के बिना।  400 से 500 रुपए /वर्ग मीटर
 (शीतलन पैड और निकास पंखा प्रणाली स्वचालन के बिना ) 
• मध्यम लागत / मध्यम तकनीक पॉलीहाउस 900-1200 रुपए/ वर्ग मीटर ( शीतलन पैड और निकास पंखा प्रणाली के साथ )
 • हाईटेक पॉलीहाउस पूरी तरह से स्वचालित नियंत्रण प्रणाली के साथ र 800 से 4000 रुपए / वर्ग मीटर।

पोलीहाउस सब्सिडी : हमारी भारत सरकार पोलीहाउस खेती के लिए बढ़ावा दे रही है। और बागवानी विभाग के माध्यम से पोलीहाउस निर्माण की लागत का 50-60% तक सब्सिडी उपलब्ध करा रही है। अधिक जानकारी के लिए नेशनल हार्टीकल्चर बोर्ड के अधिकारियों के साथ कनेक्ट कर सकते हैं। 

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड सब्सिडी मानक



स्रोत www.nhb.gov.in
अधिक जानकारी के लिए Nhb और
NHM पर क्लिक करें  और www.nhb.gov.in
देखें। 
साथ जिला उद्यान अधिकारी या निकटतम सरकारी कृषि विभाग से संपर्क कर की दिशा निर्देश दिए करते हैं। 


बैंक द्वारा जारी बागवानी लोन :
कृषक हित के लिए खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के बैंक द्वारा जारी बागवानी लोन , पोलीहाउस निर्माण के अवसरों को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
सैन्टॄल बैंक आफ इंडिया के जारी लोन सूची पोलीहाउस निर्माण के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसके अंतर्गत आने वाली लागत का 80% और अधिकतम ऋण सीमा 20 लाख रुपए तक की है। 
जोकि सेन्ट पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, शेड नेट हाउस योजना के अंतर्गत लोन दिया जा रहा है। जिसका उद्देश्य विभिन्न उच्च गुणवत्ता वाले वाणिज्यिक बागवानी फसलों जैसे फूलों, सब्जियों, फलों, औषधीय पौधों, मसालों आदि की संरक्षित खेती के लिए आवश्यकता-आधारित वित्तपोषण प्रदान करना  तथा ग्रीन हाउस, पॉली हाउस, शेड नेट आदि का निर्माण / स्थापना;  आवश्यक उपकरण और कार्यशील पूंजी की खरीद और स्थापना करना है। 
इस लोन योजना की पात्रता , ऋण सीमा , मार्जिन , ब्याज दर , जरूरी दस्तावेज आदि की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें और या अपने निकटतम शाखा अधिकारियों से बातचीत कर सहायता ले सकते हैं। 


धन्यवाद। आशा करते हैं आपको पोलीहाउस खेती निर्माण के लाभ और सब्सिडी के बारे मे जानकारी प्राप्त हुई हैं ।अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें एग्री-बिजनेस : टॉप टेन कृषि व्यवसाय


Monday, 30 March 2020

जैविक खेती : जैविक खेती करने के लाभ

जैविक खेती करने के लाभ 
नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम जैविक खेती से भूमि और वातावरण पर होने वाले प्रभाव पर जानकारी साझा कर रहे हैं। जैविक खेती करने से कृषक अपनी फसल की गुणवत्त उत्पादन के साथ अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने की कोशिश कर रहे हैं। जोकि कारगर साबित हो रही है। साथ ही मृदा संरक्षण में बहुत लाभदायक होता है। जैविक खेती करने से होने वाले प्रभावशाली लाभ को निम्र प्रकार से है।


जैविक खेती के लाभ
 1. जैविक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी का जैविक स्तर बढ़ जाता है, लाभकारी बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है और मिट्टी बहुत उपजाऊ हो जाती है।
  2. जैव-उर्वरक पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज प्रदान करते हैं, जो पौधों में मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों के माध्यम से पौधों को स्वस्थ रखते हैं और उत्पादन बढ़ाते हैं।

3. रासायनिक उर्वरकों की तुलना में जैविक उर्वरक सस्ता, टिकाऊ और आसान है।  मिट्टी की उपजाऊ स्थिति में सुधार करता है। 
 4. पौधों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पर्याप्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, और जैविक उर्वरकों का उपयोग करके पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की भरपाई की जा सकती है।
  5. कीटों, रोगों और घासों पर नियंत्रण काफी हद तक फसल चक्र, कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं, प्रतिरोध किस्मों और जैविक उत्पादों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।


6. जैविक उर्वरक सड़ने पर कार्बनिक अम्ल देते हैं, जो मिट्टी के अघुलनशील तत्व को घुलनशील तत्व में परिवर्तित करते हैं, जिससे मिट्टी का पीएच मान 7 तक कम हो जाता है। इसलिए, इसके साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।  यह तत्व फसल उत्पादन में आवश्यक है।

7. इन उर्वरकों के उपयोग से पौधों को पर्याप्त समय के लिए पोषक तत्व मिलते हैं। यह खाद मिट्टी में अपने अवशिष्ट गुणों को छोड़ देती है।  इसलिए, एक फसल में इन उर्वरकों के उपयोग से दूसरी फसल को लाभ होता है।  यह मिट्टी की उर्वरता के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

8. रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती नमी को अधिक समय तक बनाए रखने से सिंचाई लागत में कमी आती है। 
9. अत्यधिक रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति पर बुरा असर पड़ता है। 
10. जैविक खेती से भूमि की गुणवत्ता में सुधार के साथ वातावरण प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। 

धन्यवाद। अपने सुझाव हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें कम्पोस्ट खाद : घर पर बनाएं।

Sunday, 29 March 2020

भारतीय मृदा और प्रकार

  भारतीय मृदा और प्रकार
 नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम भारतीय मृदा और प्रकार के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

भारतीय मृदा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में विभाजित किया है: जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी, लेटराइट, सूखी मिट्टी, लवणीय मिट्टी, पीट ( जैविक मिट्टी)। 

 जलोढ़ मिट्टी ( दोमट मिट्टी ) 
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर जलोढ़ मिट्टी या दोमट मिट्टी के क्षेत्र में पाई जाती है।  भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40 प्रतिशत भाग पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।  जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों के जमाव से होता है। रेतीली और बलुई मिट्टी के मिलने से जलोढ मिट्टी बनाई जाती है  जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्का भूरा होता है। जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कम मात्रा होती है।  यही कारण है कि जलोढ़ मिट्टी में यूरिया का निषेचन फसल उत्पादन के लिए आवश्यक है।
  जलोढ़ मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में पोटाश और चूना होता है।  भारत में, उत्तर का मैदान (गंगा का मैदान), सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान, गोदावरी का मैदान, कावेरी का मैदान जलोढ़ मिट्टी से बना है।  गेहूँ की फसल के लिए जलोढ़ मिट्टी अच्छी मानी जाती है।  इसके अलावा धान और आलू की भी इसमें खेती की जाती है।  जलोढ़ मिट्टी रेतीली और रेतीली मिट्टी को मिलाकर बनाई गई है।  जलोढ़ मिट्टी में ही बांगर और खादर मिट्टी होती है।  बांगर को पुरानी जलोढ़ मिट्टी और खादर नई जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है।

काली मिट्टी 
 मिट्टी के क्षेत्र में भारत की काली मिट्टी का स्थान दूसरा है।  महाराष्ट्र में भारत में सबसे अधिक काली मिट्टी है और गुजरात प्रांत में दूसरी है।  ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बेसाल्ट चट्टान का निर्माण काली मिट्टी का निर्माण हुआ।  बेसाल्ट के टूटने से काली मिट्टी पैदा होती है।  दक्षिण भारत में काली मिट्टी को रेगुर कहा जाता है।काली मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कम मात्रा भी होती है।  इसमें उच्च मात्रा में लोहा, चूना, मैग्नीशियम और एल्यूमिना होता है. 
काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी पर्याप्त होती है।  कपास के उत्पादन के लिए काली मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है।  इसके अलावा काली मिट्टी में चावल की खेती भी अच्छी होती है।  काली मिट्टी में दाल और चने की भी अच्छी पैदावार होती है।  लोहे की उच्च सामग्री के कारण काली मिट्टी काली है।  काली मिट्टी में पानी जल्दी नहीं सूखता है, जिसका अर्थ है कि इसमें भिगोया गया पानी लंबे समय तक रहता है, जिसके कारण इस मिट्टी में धान की पैदावार अधिक होती है।  काली मिट्टी सूखने पर बहुत कठोर हो जाती है और गीली होने पर तुरंत चिपचिपी हो जाती है।  भारत में लगभग   5.46 मिलियन वर्ग किलोमीटर काली मिट्टी का विस्तार है।

लाल मिट्टी 
क्षेत्रफल की दृष्टि से लाल मिट्टी भारत में लाल मिट्टी का तीसरा स्थान है।  लाल मिट्टी भारत में 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।  लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से हुआ है।  ग्रेनाइट चट्टान आग्नेय चट्टान का एक उदाहरण है।  तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी है।  ज्यादातर खनिज लाल मिट्टी के नीचे पाए जाते हैं।  लाल मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा भी कम होती है।  लाल मिट्टी में मौजूद आयरन ऑक्साइड (Fe203) के कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है।  लाल मिट्टी को फसल उत्पादन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।  इसमें ज्वार, बाजरा, मूंगफली, कबूतर, मक्का आदि जैसे मोटे अनाज शामिल हैं। इस मिट्टी में कुछ हद तक धान की खेती की जाती है, लेकिन धान का उत्पादन काली मिट्टी से कम नहीं है।  तमिलनाडु के बाद, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में भी लाल मिट्टी पाई जाती है। 

लेटराइट मिट्टी 
लेटराइट मिट्टी भारत में क्षेत्रफल के मामले में चौथे स्थान पर है।  भारत में यह मिट्टी 1.26 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।  लेटराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड और एल्यूमीनियम ऑक्साइड की उच्च मात्रा होती है, लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश कार्बनिक तत्वों की कमी होती है। यह मिट्टी पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है।  इसमें उच्च मात्रा में आयरन ऑक्साइड और एल्यूमीनियम ऑक्साइड होता है, लेकिन इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटा और चूने की कमी होती है।  इस मिट्टी का रंग भी लाल होता है।  जब बारिश होती है, तो चूना पत्थर इस मिट्टी से अलग हो जाता है, जिसके कारण यह मिट्टी सूखने पर लोहे की तरह सख्त हो जाती है।

पहाड़ीय मिट्टी 
इनमें कंकड़ और पत्थर अधिक होते हैं।  पोटाश, फॉस्फोरस और चूने की भी पर्वतीय मिट्टी में कमी है।  बागवानी क्षेत्र में बागवानी विशेष रूप से की जाती है।  झूम खेती केवल पहाड़ी क्षेत्र में की जाती है।  झूम खेती नागालैंड में सबसे ज्यादा प्रचलित है।  पर्वतीय क्षेत्र में गरम मसाला सबसे अधिक खेती वाला क्षेत्र है।  
सूखी और रेगिस्तानी मिट्टी: यह सबसे कम उपजाऊ होती है। सूखी और रेगिस्तानी मिट्टी में घुलनशील लवण और फॉस्फोरस अधिक होते हैं।  इस मिट्टी में कम नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ होते हैं।  इस मिट्टी को तिलहन के उत्पादन के लिए अधिक माना जाता है।  पानी की व्यवस्था के बाद रेगिस्तानी मिट्टी में एक अच्छी फसल भी पैदा होती है।  इस मिट्टी में तिलहन के अलावा ज्वार, बाजरा की खेती की जाती है।  

लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी
लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी, उसर मिट्टी और कल्लर मिट्टी के नाम से जाना जाता है।  क्षारीय मिट्टी उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पानी की निकासी की सुविधा नहीं है।  ऐसे क्षेत्र की मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण मिट्टी क्षारीय हो जाती है।  क्षारीय मिट्टी तटीय मैदान में बनती है।  इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है।  भारत में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान और केरल के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

पीट मिट्टी 
 पीट मिट्टी को जैविक मिट्टी व दलदली मिट्टी के रूप में जाना जाता है।  भारत में दलदली मिट्टी का क्षेत्र केरल, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पाया जाता है।  दलदली मिट्टी में फास्फोरस और पोटाश की मात्रा कम होती है, लेकिन लवण की मात्रा अधिक होने के कारण मिट्टी को भी फसल उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता है।

धन्यवाद 

Friday, 27 March 2020

कम्पोस्ट खाद : घर पर बनाएं।

 नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।   
पौधों के लिए खाद पोषक तत्वों में समृद्ध है और बाजार में उपलब्ध नहीं है।  अगर आपके पास खुली जगह है तो घर पर ही आप पोषक तत्वों से भरपूर खाद तैयार कर सकते हैं।  पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी पौधों के लिए आवश्यक है।  यहां की मिट्टी में पोटाश और फॉस्फेट अच्छी मात्रा में मिलाया जाता है, लेकिन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक तत्व कम नाइट्रोजन और नाइट्रोजन खाद के रूप में संतुलित रूप में उपलब्ध है।
  मनुष्य ही नहीं, पशु और पक्षी सभी को वनस्पति जगत से अपना मुख्य भोजन मिलता है, और यह कि मल और मूत्र मिट्टी में मिल जाते हैं और भूमि को उपजाऊ बनाते हैं।  यदि इसे ठीक से तैयार किया जाता है, तो हम खाद तैयार करके पौधों को बहुत संतुलित पोषण सामग्री प्रदान कर सकते हैं।   प्रकृति में, यह सड़ने और पिघलने बैक्टीरिया की मदद से होता है।  यह भी देखा गया है कि यह जीवाणु केवल (लगभग 3 फीट) की गहराई तक आसानी से चला जाता है।  तदनुसार, हम खाद के लिए गड्ढे तैयार करते हैं।  यह गड्ढा तीन फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा होना चाहिए।

कम्पोट घर बैठे बनाए 

गड्ढे का सही आकार 5*3 फीट या सुविधा के अनुसार  होना चाहिए। गड्ढे में, पहले उसके चारों ओर पानी छिड़कें और इसे नम करें, और इसमें 30 मिनट के लिए घर के पत्ते, पौधे, रसोई और अन्य बदबूदार अपशिष्ट छोड़ दें।  30. CM ऊंचाई तक भरें।  उस पर गोबर फैलाएं।  यदि कोई गोबर नहीं है, तो यूरिया की परत फैलाएं।  इसके बाद, फिर से पानी का छिड़काव करके, आप कचरा, कचरा, पत्ते आदि भरते हैं। गोबर खाद में बैक्टीरिया पैदा करता है, जो सड़ने की प्रक्रिया को तेज करता है।  इसके बाद, पूरे गड्ढे को पैर से धक्का दें और उस पर पर्याप्त पानी डालें।  यह नमी अपशिष्ट को सड़ने और सड़ने में तेजी लाती है।

इस तरह से गड्ढे को पूरी तरह से भर दें और इसे मिट्टी के साथ बंद कर दें और समय-समय पर पानी डालते रहें।  इस प्रक्रिया में, आपको तीन से चार महीनों में पोषक तत्वों से भरपूर खाद मिल जाएगी और घरेलू कचरे - कचरे का भी सही उपयोग हो जाएगा।  यह काले रंग के पाउडर की तरह दिखेगा।  इसकी कोई महक नहीं होगी।


कम्पोस्ट खाद कैसे तैयार करें

 तैयार खाद के लिए एक गड्ढा खोदें, जो तीन फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा होना चाहिए।  गड्ढे में, पहले इसके चारों ओर पानी छिड़कें और इसे मॉइस्चराइज करें, और घर के पत्ते, पौधे, रसोई और अन्य बदबूदार कचरे को 30 मिनट के लिए इसमें जोड़ें।  3 फीट ऊँचाई तक भरें।  उस पर गोबर फैलाएं।  उसके बाद फिर से पानी छिड़क कर कचरा - कचरा, पत्ते आदि भरें।  इसके बाद, पूरे गड्ढे को पैर से धक्का दें और उस पर पर्याप्त पानी डालें।  इस तरह से गड्ढे को पूरी तरह से भर दें और इसे मिट्टी के साथ बंद कर दें और समय-समय पर पानी डालते रहें।  यह प्रक्रिया तीन से चार महीनों में आपके लिए है।  तत्वों से भरपूर खाद तैयार की जाएगी और घरेलू कचरे का सही इस्तेमाल किया जाएगा।

 नीचे दिए गए सभी चरणों का पालन करें जो आपको महान खाद बनाने में मदद करते हैं। 

  1: अपने खाद कंटेनर को सीधे मिट्टी पर रखें - कीड़े और अन्य रोगाणु खाद की प्रक्रिया को गति देंगे।  पता लगाएं कि आपके लिए कौन सा उर्वरक का कंटेनर सबसे अच्छा है।  बेस पर चिकन तार कृन्तकों को बाहर रखेगा।  ध्यान रखें कि मिश्रण हरे और भूरे रंग के पदार्थ के बराबर होना चाहिए।  

2: गार्डन कांटा के साथ, आप कभी-कभी स्टैक को मिलाकर इस प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं, ताकि यह बाहर के तत्वों को अंदर से मिला सके।  इसे बारिश से बचाने के लिए अपने बिन को कवर करें।

  3: जब मिश्रण भूरा हो जाता है और कुरकुरा और थोड़ा सुगंधित होता है, तो प्रक्रिया पूरी हो जाती है।  यदि ढेर नियमित रूप से मिश्रण करना जारी रखता है, तो छह महीने लगेंगे।  अन्यथा, इसमें अधिक समय लग सकता है।

धन्यवाद। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com  

और देखें जैविक खेती : जैविक खेती करने के लाभ

Thursday, 26 March 2020

एग्री-बिजनेस : टॉप टेन कृषि व्यवसाय

  नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम कृषि उत्पादन से जुड़े सरल और सर्वोत्तम लघु कृषि व्यवसाय के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

टॉप टेन कृषि व्यवसाय

कृषि व्यवसाय में अवसर


1. डेयरी उद्योग : डेयरी व्यवसाय किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह दूध उत्पादन के स्तर को बढ़ावा देने के साथ रोजगार साधनों को बढ़ावा देने के लिए लाभकारी है। डेयरी उद्योग से किसान मानव उपभोग के लिए दूध, दही, पनीर और अन्य डेयरी उत्पादों के निर्माण के लिए दूध से ही निकालते हैं।

2. मुर्गी पालन : पोल्ट्री फार्मिंग किसान उन्नति के लिए लाभकारी व्यवसाय है। पोल्ट्री फार्मिंग व्यवसाय किसान के रोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए लाभकारी है। इन उत्पादों से अंडे , मांस आदि के उत्पन्न करने के लिए स्थापित किए जाते हैं। जोकि भोजन का अच्छा स्रोत माने जाते हैं। 

3. मशरूम फार्मिंग :  मशरूम फार्मिंग किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह बहुत कम समय में अच्छी आय देने के लिए स्थापित किए जाते हैं। और अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 

4. मधुमक्खी पालन : मधुमक्खी पालन किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह मुख्य रूप से शहद और मोम जैसे अन्य उत्पादों को बेचने के लिए किया जाता है।  जोकि छोटे से निवेश करने से आय और रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए जाते हैं।

5. मत्स्य पालन : मत्स्य उद्योग उन्नत व्यवसाय जो किसी भी समय आय और रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए जाते हैं। जोकि मछली उत्पादन के साथ मीट उत्पादन के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। 

6. आर्गेनिक फार्म हाउस :  आर्गेनिक फार्म हाउस में रोजगार के अवसरों को स्थापित किया जा रहा है। इसमें उगाये गये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर मांग में बहुत बढ़ोतरी हुई है। जोकि भोजन के लिए लाभकारी होने के साथ आय में वृद्धि को दर्ज किया गया है। जैविक फार्म हाउस व्यवसाय आम तौर पर छोटे, परिवार चलाने वाले खेतों पर किया जाता था। लेकिन जब से जैविक रूप से विकसित खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ी है, लोग जैविक खेती के लिए भूमि में निवेश कर रहे हैं।



7. कृषि उर्वरक वितरण : कृषि उर्वरक वितरण व्यवसाय छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कृषि श्रमिकों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय है।  यह मध्यम पूंजी निवेश से शुरू हो सकता है।  यह लाभदायक एग्रीबिजनेस विचारों में से एक है।

8. वर्मीकम्पोस्ट जैविक उर्वरकों का उत्पादन : जैविक खाद उवर्रकों का उत्पादन कृषक हित में काम करता है। छोटे से निवेश करने से अधिक वर्मीकम्पोस्ट जैविक खाद उत्पादन करने से समर्थ हो जाते हैं। जोकि अपने नीजी क्षेत्र से भी जैविक उवर्रको को स्थापित कर रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप कृषक हित में रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। 

9. पशुधन चारा उत्पादन : पशुधन चारा उत्पादन कृषि से जुड़े श्रमिकों के रोजगार के अवसरों का लाभ उठा रहे हैं। पशुपालन के लिए दाना और चारे की गुणवत्ता मांग में बढ़ोतरी हुई है। जिसके कारण निम्न निवेश करने से अधिक आय प्राप्त हो रही है। 

10. फल और सब्जियों की खेती : सब्जियों-फलों की खेती एक निश्चित अवधि और निश्चित क्षेत्र में अधिक आय के स्रोतों को बढ़ावा दे रही है। जिसकी मांग बढ़ने के परिणामस्वरूप कृषक प्रशिक्षण के साथ-साथ रोजगार की संभावनाएं बनती है। जोकि मध्यम निवेश करने के साथ अच्छा उत्पादन करने के लिए लाभकारी व्यवसाय है। 

धन्यवाद। अपने सुझाव हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें पोलीहाउस : खेती और सब्सिडी

Wednesday, 25 March 2020

कारोनावायरस : कृषि उत्पादन चुनौतिया

नमस्कार । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हम वर्तमान में एक महामारी का सामना कर रहे हैं     कोविड-19
भारत, दुनिया से ज्यादा इस खतरे से बचाना है तो बहुत सावधान रहने की जरूरत है। कोरोनावायरस भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए एक और खतरा है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस छूत बिमारी पर अंकुश लगाने के सराहनीय प्रयासों किये जा रहे हैं ओर लोगो को एक शहर से दूसरे शहर एक गांव से दूसरे गांव और एक स्थान से दूसरे स्थानो पर बड़े पैमाने पर आवाजाही न करने की जानकारी दी जा रही है । यह कोई पता नहीं लगा सकते कि इस बडी संख्या में  कितने लोग वायरस से पीड़ित हैं। और यह रोग हमारे खाद्य आपूर्ति और बीजों को भी प्रभावित करेगा।

कोविड 19 : रबी खरीफ फसलों पर प्रभाव
कृषि हमारी वास्तविकता का आधार है और हमारी कृषि गुणवत्ता बीज और संगठित बीज क्षेत्र पर निर्भर करती है।  हमारा खाद्य उत्पादन भी मानव संसाधन और कृषि श्रम की उपलब्धता और कृषि उत्पादों की आवाजाही पर निर्भर है जो कोविद -19 के कारण सभी प्रतिबंधित हैं।
अब देश भर में रबी की गेहूं और अन्य फसलों की कटाई  प्रक्रिया, भंडारण क्षमता को प्रभावित करेगा। जिसके कारण खाद्य उत्पादन और उच्च खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति कमजोर होना संभव है। जो इस वर्ष के अंत में खाद्य उत्पादन को कम कर देंगे ।
देश के उत्तरी हिस्सों में किसान पहले से ही बेमौसम बारिश का सामना कर रहे थे, और अब वे कोरोनोवायरस की चपेट में हैं। लोगों को डर है कि इससे उनकी  रबी की फसल प्रभावित हो सकती है।  मौजूदा माहौल में पहले से ही खेती की लागत बढ़ गई।

बीज संसाधनों पर प्रभाव
बीज क्षेत्र के लिए, इस मौसम के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और बीज मूल्य निर्धारण की गणना इस माहौल में बहुत कम हो सकती है और बीज खुदरा विक्रेताओं के साथ-साथ छोटी और मध्यम बीज कंपनियों को भी जायद और खरीफ सीजन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत किसानों को खरीफ सीजन के लिए 250 लाख क्विंटल गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति करने के लिए तैयार नेशनल सीड सर्टिफिकेशन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् व अन्य संस्थाओं को राहत देने वाली पहल करनी होगी क्योंकि प्रयोगशालाएं बंद हैं, और निजी बीज क्षेत्र भी कोविड-19 की चपेट से बंद है।
  भारत की खाद्य आपूर्ति और किसानों की आय का लगभग 60 प्रतिशत खरीफ मौसम पर निर्भर है और खरीफ बीज तैयार करने के लिए मार्च से मई एक महत्वपूर्ण समय है। किसानों को बीज का उत्पादन और वितरण कौन करायेगा और अच्छे बीज पैदा किए बिना भारत अपने रबी और खरीफ लक्ष्यों को कैसे पूरा कर सकता है।



बीज आपूर्ति प्रभावित
बीज किसानों के खेतों में भेजे जाने की तैयारी होने से पहले बीज की आवश्यकता होती है। किसानों के खेतों में बीज उत्पादन के अलावा, पूर्व फसल कटाई के संचालन की देखरेख, गुणवत्ता नियंत्रण के लिए उत्पादन पर्यवेक्षी टीमों की आवश्यकता होती है। इसी तरह गुणवत्ता आश्वासन टीमों को निरीक्षण करने की आवश्यकता होती है। परीक्षण संचालन के साथ-साथ प्रयोगशाला परीक्षणों की भी किये जाते हैं।
बीजों को पूरे देश में संसाधित करने, पैक करने और वितरित करने की आवश्यकता है ताकि वे लाखों खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से जरूरतमंद किसानों तक पहुंच सकें जो राष्ट्र की खाद्य आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अपनी फसल की बुवाई समय से कर सकें।
बीजों की आवाजाही को एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी रुकावट के भेजा जा सके। पश्चिम बंगाल में जूट की बुआई शुरू हो चुकी है।  पंजाब, हरियाणा आदि में बहुत जल्द कपास की बुवाई शुरू हो सकती है।

सुरक्षा के साथ उत्पादन
डर कोरोना की तुलना में तेजी से बढ़ता है।  हमें सुनिश्चित निर्णय लेने की आवश्यकता है, इसलिए COVID-19 हमारे कृषि और खाद्य आपूर्ति को खतरे में डालने के लिए विकसित नहीं हुआ है।  किसी भी सरकार को बीज सहित कृषि उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए।  बीज कंपनियों और निर्यातकों और शामिल श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
हम सभी को इस वायरस से लड़ने के लिए एक राष्ट्र के रूप में एक साथ आना होगा।  किसानों और बीज प्रजनकों सहित चिकित्सा कर्मचारियों, सरकार और आवश्यक श्रमिकों की भारत में वायरस प्रूफिंग में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी खाद्य आपूर्ति घटिया न हो और भारत बाकी दुनिया की तरह दहशत में न आए।

धन्यवाद। अपने सुझाव के लिए updateagricture@gmail.com

Tuesday, 24 March 2020

भारत में कृषि क्रांतिया

 नमस्कार। मेरे ब्लोग पर आप सभी का स्वागत है। आज हम भारतीय कृषि क्षेत्र में लाती गरी क्रान्तिया के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।
 भारत के कृषि क्षेत्र को बढवा देने के लिए कृषि क्षेत्र में कई प्रकार की क्रांति लाई गई जिनकी सहायता से भारत में कृषि के क्षेत्र में काफी स्तर तक सुधार आया और भारत का विश्व में एक अलग स्थान बना तो आइये जानते हैं भारत में कृषि के क्षेत्र हुई क्रांतियाँ।
माना जाता है कि भारत में पहली क्रांति 1966 -67 की हरित क्रांति के साथ शुरू हुई थी।  इस क्रांति के कारण, बीजों की उन्नत गुणवत्ता को प्राथमिकता दी गई, जिसके परिणामस्वरूप भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया।  इस क्रांति के बाद, भारत में दूध क्रांति, पीली क्रांति, गोल क्रांति, नीली क्रांति आदि शुरू हुई और भारत दूध, सरसों, आलू और मछली उत्पादन में आत्म निर्भर हो गया।



कृषि क्रांतियाँ

 1. हरित क्रांति
2. नीली क्रांति
3. स्वेत / सफेद क्रांति
4. रजत/ सिल्वर क्रांति
5. सुनहरी/ गोल्डन क्रांति
6. ग्रे / ब्राउन क्रांति
7. पीली क्रांति
8. लाल क्रांति
9. गोल क्रांति
10. काली क्रांति
11. इन्द्रधनुष क्रान्ति

1. हरित क्रांति : 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत मानी जाती है।  हरित क्रांति के जनक डॉ नार्मन बोरलॉग ओर भारत में डॉ एम.एस. स्वामीनाथन  को श्रेय दिया जाता है। गेहूं और धान वर्षो से हरित क्रांति का मुख्य आधार रहा है, जिसके परिणामस्वरूप उपज में सुधार हुआ और अतिरिक्त उपज देने वाली फसलें की किस्मों में वृद्धि हुई और प्रति वर्ष अतिरिक्त टन अनाज का उत्पादन किया जाता है। और कृषि श्रमिकों के रोजगार के अवसर प्राप्त हुआ और आय में वृद्धि कराई गई। 1970 में डॉ नार्मन बोरलॉग को विश्व के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2. नीली क्रांति : 1985 में मत्स्य उद्योग विभाग उत्पादन में वृद्धि के लिए नीली क्रांति की शुरुआत का श्रेय डॉ अरुण कृष्णा और हरलाल चौधरी को दिया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप भारत के मछली उत्पादन में वृद्धि हुई। ओर  2013-14 में लगभग 96 लाख टन मछली उत्पादन रहा।

3. स्वेत/ सफेद क्रांति : 1970 के दशक के दौरान स्वेत क्रांति की शुरुआत का श्रेय डॉ डी वर्जीग कुरियन को दिया जाता है। जिसे आपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है। स्वेत क्रांति का सीधा संबंध भारत में दूध उत्पादन में वृद्धि से रहा। देश में स्वेत क्रांति को बढ़ावा देने के लिए  राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा एक नया कार्यक्रम "ऑपरेशन फ्लड" शुरू किया गया। पशुपालन में सुधार के लिए अलग से एक पैकेज पेश किया गया था। सहकारी समितियां गठित की गई निजी दुध डेयरी का साझा किया गया।  जिसके परिणामस्वरूप भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुध उत्पादन करने वाला देश है। जो भारतीय किसान के रोजगार और संसधानो में वृद्धि हुई।



4. रजत/ सिल्वर क्रांति : कृषि की यह रजत क्रांति अंडा व मुर्गियों के उत्पादन से संबंधित है।

5. सुनहरी/ गोल्डन क्रांति : गोल्डन क्रांति का संबंध बागवानी , शहद , फलो के उत्पादन में वृद्धि से है। भारत फल सब्जी उत्पादन में दुनिया भर में दुसरे स्थान पर है।

6. ग्रे / ब्राउन क्रांति : ग्रे क्रांति का संबंध खाद उवर्रकों की उत्पादन क्षमता में सुधार करना और अतिरिक्त उत्पादन बढ़ाने से है। जोकि हरित क्रांति से जुड़ा हुआ है। जिसका श्रेय देवेन्द्र शर्मा को दिया गया है।

7. पीली क्रांति : 1986-1987 में डॉ सैम पित्रोदा को पीली क्रांति के जनक माने जाते हैं। जिसके अंतर्गत तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया। जिसमें मुंगफली, सरसों ,  तिल, अंरडी , सोयाबीन, अलसी सूरजमुखी की फसलें ली गई।  2003-04 में इन फसलों के द्वारा देश में तिलहन उत्पादन कुल 250 लाख टन था जो 2013-14 में 330 लाख टन उत्पादन लिया गया जो कि अपने आप में सर्वाधिक उत्पादन रहा। इन फसल के प्रयास से ही भारत तिलहन उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।  भारत तिलहन उत्पादन में दुनिया भर में रिकॉर्ड छटे स्थान बनाया रखा है।

8. लाल क्रांति : लाल क्रांति का संबंध भारत में टमाटर की उत्पादन क्षमता के साथ मांस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए है। भारत में जिनका श्रेय विशाल तिवारी को जाता है।

9. गोल क्रांति : गोल क्रांति का संबंध आलू उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने से है। गोल क्रांति का लक्ष्य आलू के उत्पादन में वृद्धि करना है।  साथ ही, कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को इसकी गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

10. काली क्रांति : इसका संबंध कोयला उत्पादन और पेट्रोलियम  खनिज तेल के उत्पादन बढ़ाने व उत्पाद संसाधन विकास से है।

11. इन्द्रधनुष क्रान्ति  : सन जुलाई 2000 में भारत सरकार ने नई कृषि नीति को लागू किया गया। जिसके अंतर्गत हरित क्रांति , नीली , लाल , स्वेत , ग्रे काली आदि क्रान्तियो को एक साथ चलाने ओर निगरानी रखने और के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जागरूक करने के लिए कृषि नीति का गठन किया गया जिसको  इन्द्रधनुषी क्रान्ति कहा गया है।

धन्यवाद। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagricture@gmail.com

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Monday, 23 March 2020

कोरोनावायरस : प्रभावित भारतीय कृषि बाजार

नमस्कार मेरे ब्लोग पर आप सभी का स्वागत हैं। कोरोनावायरस के कारण प्रभावित हुआ भारतीय कृषि बाजार के बारे में अपनी जानकारी साझा कर रहे हैं।


आजादपुर कृषि उपज मंडी समिति के अधिकारियों ने बताया कि, "कृषि मांग में गिरावट आई है क्योंकि थोक मांग में गिरावट आई है। हालांकि, सब्जियों की अधिक मांग है, जिसमें प्याज, आलू और टमाटर जैसी जीवन शैली में अधिक मांग शामिल हैं।"  बाजारों और रेस्तरां जैसे दिल्ली, पुणे, गुजरात, हैदराबाद आदि से थोक मांग बढ़ने और निर्यात पर अनिश्चितता के कारण सब्जियों, फलों और चीनी जैसे कृषि वस्तुओं की कीमतें 15 से 20% तक गिर गई हैं।  
कोरोनावायरस के कारण भारत में फल सब्जी तेल पेय आदि पदार्थों की कीमतों में वृद्धि हो रही है। जिनका असर आम जनता पर आ गया है। केंद्रीय खाद्य निगम (FCI) के अनुसार, केंद्रीय भंडार में  584.97 लाख टन अनाज की भरपूर मात्रा है।  विश्व में एफएओ की मुद्रास्फीति खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने वैश्विक मुद्रास्फीति और कई देशों में कीमतों में वृद्धि की आशंका व्यक्त की है।  एफएओ के अनुसार, दुनिया में खाद्यान्नों और तिलहनों की कमी नहीं है, लेकिन कई क्षेत्रों में घबराहट के कारण कीमतें बढ़ने का खतरा है।  साथ ही, उनकी आपूर्ति लॉकडाउन से प्रभावित होने की संभावना है। भारत में अब तक 75 जिलो को लोकडाउन कर दिया गया है। 
कृषि और विभिन्न उद्योगों में शामिल किसान जिनमें मुर्गी पालन, मछली पालन आदि शामिल हैं, सरकार से समर्थन मांगने लगे, उनके उद्योगों को पटरी पर लाने में मदद के लिए ऋण के रूप में पैसा दिया जाना चाहिए।  देश भर के व्यापारियों को अफवाहों के कारण बाजारों और उद्योगों को बंद करने के लिए मजबूर किया गया है और जो कृषि-उद्योग चल रहे हैं वे अफवाहों के कारण संघर्ष कर रहे हैं।


खासकर पोल्ट्री उद्योग जो कोरोनोवायरस से संबंधित अफवाहों का सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, जिसके कारण उधोगों के साथ व्यापार और रोजगार भी प्रभावित हुआ है। किसानों ने सरकार से राहत राशि शीघ्र ऋण सहायता की मांग की है।


उद्योग संघों ने सरकार से वित्तीय सहायता और बैंक ऋणों के पुनर्गठन की अपील की है।  "सरकार द्वारा कोरोनोवायरस महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए बनाई गई जागरूकता के कारण, अधिकांश श्रमिक काम के लिए रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं और प्रवासी श्रमिक भी अपने मूल स्थानों पर लौट रहे हैं। यह स्थिति तेज होती है और बड़े पैमाने पर उत्पादन रुकने की संभावना है।"
कृषि मंडियों के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि फलों और सब्जियों की कमी किसी भी तरह से कम नहीं होगी, सरकारी मशीनरी हर स्तर पर पूरी तैयारी कर रही है। 

कोरोनावायरस के कारण बीते दिनों में भारत या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चिकन आदि को छोड़कर कृषि वस्तुओं की मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।  हालांकि, कीमतें गिर गई हैं, कोरोना की आशंकाओं से प्रभावित हैं।  
ऑल इंडिया वेजिटेबल एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अधिकारियों के अनुसार, फलों और सब्जियों का निर्यात मूल्य लगभग 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम से गिरकर 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।  हालांकि, निर्यात के लिए पैकेजिंग और प्रेषण में कोई कमी नहीं की गई है।  पिछले कुछ हफ्तों के दौरान, थोक चीनी की कीमतों में भी 4-5% की गिरावट दर्ज की गई है। 

Sunday, 22 March 2020

कृषि : विभिन्न विषयों के जनक


नमस्कार, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम कृषि में खोजें गये विभिन्न विषयों आविष्कार तथ्यों आदि के जनक ओर खोजकर्ता के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार हैं। 

कृषि विभिन्न विषयों के जनक

   विषय            -       जनक ( खोजकर्ता)
एग्रीकल्चर के जनक : अल्बर्ट हावर्ड

आधुनिक एग्रीकल्चर के जनक : नार्मन अर्नेस्ट बोरलाग

एग्रोनोमी के जनक : पित्रो डेक्रजेन्सी 

जनेटिक्स के जनक : ग्रेगर जॉन मेंडल 

हरित क्रांति के जनक: डॉ ई.एन. बुरलाॅग

हरित क्रांति के जनक (भारत): डॉ एम.एस. स्वामीनाथन

गोल्डन क्रांति के जनक : डॉ के.एल. चड्डा 

प्लांट पैथौलोजी के जनक : एंटोन डी बरी 

प्लांट पैथौलोजी के जनक (भारत में) : ईजे बटलर 

फसल चक्र के जनक : नाॅर फाॅरक 

वनस्पति विज्ञान (बाॅटनी )के जनक : थियो फ्रेंस्टस

पादप फिजियोलॉजी के जनक : स्टीफन हेल्स 

ऐन्टोमालोजी के जनक : विलियम किर्बी 

कृषि जोत (टीलैज) के जनक : जित्रौ टूल 

मृदा विज्ञान के जनक : वसीली वासिलिवेच डोकुचेव 

बाॅयोलोजी के जनक : अरस्तू 

हार्टिकल्चर के जनक (भारत) : एम. एच. मैरिगौडा 

कृषि मौसम विज्ञान के जनक : डी.एन. वालिया 

कृषि विस्तार (एक्सटेंशन) के जनक : सीमैन कन्नप 

कृषि रसायन के जनक : जस्टन वाॅन लेबिंग 

पादप प्रजनन के जनक (भारत) : डॉ बी.पी. पाल 

साइटोलॉजी के जनक : रॅाबर्ट हुक 

माइक्रोबायोलॉजी के जनक : ए.वी. लीवेनहाॅक 

प्रजनन प्रोधौगिक के जनक : पाॅल बर्ग

पादप टिसु कल्चर के जनक : जी. हैबरलैडस 

प्राकृतिक खेती के जनक : मसानोबु फुकुओका

जैविक खेती के जनक : अल्बर्ट हावर्ड 

गोल्डन राइस के जनक : डॉ एन्गो पोट्रीकस 

हाइब्रिड राइस के जनक : याॅन लोंगपीन्गस 

हाइब्रिड काॅटन के जनक : डॉ सी.टी. पटेल 

रिमोट सेंसिंग के जनक (भारत) : डॉ पी.आर. पिशरोती

धन्यवाद। इन तथ्यो को साझा करने पर मेरे साथ ही आप सभी को भी फायदेमंद साबित होगा। अपने सुझाव के लिए updateagriculture@gmail.com


और देखें भारत में कृषि क्रांतिया





Saturday, 21 March 2020

फसल वर्गीकरण : वानस्पतिक नाम

फसलों का वर्गीकरण , वानस्पतिक नाम 
मेरे ब्लोग में आपका स्वागत है। आज हम फसल वर्गीकरण के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। 
कृषि फसलों को खाद्य फसलों, कृषि संगठनों - अनाज, दाल, फलियां, फल, सब्जियों आदि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। कृषि फसलों के वर्गीकरण के बारे में जानकारी निम्न प्रकार से है। 
कृषि फसलों के श्रेणीवार वर्गीकरण
1. अनाज वर्गीय की फसलें
2. दलहन वर्गीय की फसलें
3. तिलहन वर्गीय की फसलें
4. रेशेवाली फसलें
5. चारा वर्गीय फसलें 
6. शुगर वर्गीय फसलें
7. फल सब्जी वर्गीय फसलें
8. गोभी सब्जी वर्गीय फसलें 
9. पत्ती , जड़ , तना (कन्द) वर्गीय फसलें

1. अनाज वर्गीय फसलें : इनमें अनाज वर्गीय में आने वाली फसलें उगाई जाती है। जैसे - 
• गेहूं ( ट्रिक्टिकम एस्टीवियम )
• धान ( औराइजा सैटाइवा )
• जौ ( हॅार्डियम वल्गेयर )
• बाजरा ( पैनीसिटम ओमेरिकोनम )
• मक्का ( जिया मेज )

2. दलहन वर्गीय फसलें : इनमें दाल वाली फसलें आती है। जैसे : 
• अरहर ( कैजेनस कजान )
• चना ( साइसर एरीटिनम )
• काला चना ( विग्ना मुन्गो ) 
• मसूर ( लैंस सिनारिसिस )
• लोबिया ( विग्ना उगिरकुलाटा )
• फ्रेंच बीन ( फैजोलस वल्गेरिस )

3. तिलहन वर्गीय फसलें : तिलहन वर्गीय फसले तेल के लिए उगाई जाती है। जैसे 
• सरसों ( ब्रेसिका जंसियन )
• मूंगफली ( अराचिस हाइपोगिया )
• अलसी ( लिनियम ओसिटेसिनीयम )
• तिल ( सीसमम इंडिकम ) 
• अरंडी ( रिकिनयस कम्युनियस )
•  सूरजमुखी ( हेलियसथस )
• सोयाबीन ( ग्लाइसिन मेक्स)

4. रेशेवाली फसलें : फाइबर फसलें उनकी फसलों के लिए उगाई जाने वाली फसलें हैं, इनका उपयोग कागज, कपड़े या रस्सी बनाने के लिए किया जाता है। जैसे -

• कपास ( गोसिपीयम )
• जूट ( कार्कोरस ओलिटोरियस & कार्कोरस कप्सुलरियस )

5. चारा वर्गीय फसलें : ये फसलें मुख्य चारे के खेती की जाती है। जैसे -

• बरसीम  ( ट्राइफोलियम अलेक्जेंड्रिनम ) 
• ज्वार ( सौरघम वल्गेअर )
• लूसर्न ( मेडिकागो सटिवा ) 
• जई ( अवेना सटिवा ) 

6. शुगर वर्गीय फसलें : शुगर वर्गीय फसलें  चीनी या शुगर उत्पादन के लिए उगाया जाता है। जैसे -

• चुकंदर ( बीटा वल्गरिस स्पी. )
• गन्ना ( सैकेरम ओफिसिनेरम ) 

7. फल सब्जी वर्गीय फसलें : इन वर्ग के अन्तर्गत आने वाली फसलें जैसे -

• टमाटर ( लाइकोपर्सिकान स्कुलेटम )
• बैंगन ( सोलेनम मेलोंगना )
• मिर्ची ( कैप्सिकम  अनुमम )
• कद्दु ( कुकरर्बिता मौसचाता )
• मटर ( पिसम सेटिवियम )
• भिण्डी ( एबेलमोसस एस्कुलेटस )
• खीरा ( कुकूमिस सैटाइवस )
• करेला ( मोमोरडिका चारनतिंरन )
• लोकी (लागेनारिया सिसेरिया )
• तोरई ( लफ्फा एकटंगुला रोक्स्ब .)
• तरबूज ( सिट्रूलस लैनाटस )
• खरबुजा ( कुुकुमिस मेलों एल. )
वेजिटेबल्स


8. गोभी सब्जी वर्गीय फसलें  :  इन वर्ग के अन्तर्गत आने वाली फसलें जैसे -

• फूलगोभी ( ब्रेसिका ओलेरासिया वर. बुट्रायटिस )
• पत्ता गोभी ( ब्रेसिका ओलेरासिया वर. कैपिटटा )

9. पत्ती , जड़ , तना (कन्द) वर्गीय फसलें : इन वर्ग के अन्तर्गत आने वाली फसलें जैसे -

• पालक ( स्पिनिया ओलेरसाइए )
• मेंथी ( ट्राइगोनेला फेनुम -ग्रेकेम )
• मूली ( रेफैनस सैटाइविस )
• शलजम ( ब्रेसिका रापा )
• गाजर ( डाकस कैरोटा )
• प्याज ( आलियम सिपियम )
• आलू  ( सोलेनम ट्यूबरोसम एल. )
• शकरकंदी ( इपोमेआ बाटटस एल. )

इस प्रकार कृषि फसल वर्गीकरण से फसलें को उनके उचित दाल, सब्जी , चारा, शुगर आदि अनुसार बुवाई कर उत्पादन लेने में किसानों को लाभ मिलेगा।


Friday, 20 March 2020

कीटनाशक: उपयोग के सरल दिशा निर्देश

कई प्रकार के कीट विभिन्न प्रकार की फसलों, सब्जियों और फलों के पेड़ों पर हमला करते हैं  ये पूरी फसल को खराब कर देते हैं।  इन कीटों को नष्ट करने के लिए आजकल कीटनाशकों का बहुतायत में उपयोग किया जाता है।  ये कीटनाशक जहरीले पदार्थों की श्रेणी में आते हैं।
कीटनाशक का छिड़काव करते समय सावधानियां बरतनी चाहिए जिससे कीट से नष्ट हो जाए और इसका प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों या जानवरों पर न पड़े।  इन कीटनाशकों के शरीर में प्रवेश करने पर परजीवी या अन्य सूजन संबंधी बीमारियां भी हो सकती हैं।  यदि ये दवाएं नीचे की ओर गिरती हैं और लंबे समय तक रहती हैं, तो यह भूमि की उर्वरता को नष्ट कर देती है।
कीटनाशक उपयोग के सरल दिशा निर्देश


कीटनाशक खरीदते समय दिशा निर्देश

 • कीटनाशक दवा को प्रमाणित और विश्वासनीय  संस्था से ही लेना चाहिए। 
• कीटनाशक के डिब्बे पर प्रभावी तिथि देखी जानी चाहिए। प्रभावी तिथि की समाप्ति के बाद, इन दवाओं को न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही उपयोग किया जाना चाहिए।

  उपयोग करने के दिशा निर्देश 

• सुबह और शाम को पाउडर के रूप में कीटनाशक का उपयोग करने की सलाह दी जाती है 
• 12:00 से 2:00 समय के बीच छिड़काव नहीं किया जा सकता है। जोकि फसल और मनुष्य दोनों के लिए अच्छा नहीं रहता। गर्मी अधिक होने पर दोपहर में पौधे मुरझा जाते हैं और मनुष्य भी से प्रभावित हो सकते हैं 
 • कीटनाशकों करने वाले व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ होना चाहिए, उसके शरीर पर कोई कटा हुआ या चोट नहीं लगी होना चाहिए ताकि कीटनाशक व्यक्ति के शरीर पर कोई प्रभाव न कर सके।
• कीटनाशक विषाक्तता निश्चित मात्रा में होनी चाहिए ताकि कीटो को रोका जा सके लेकिन मनुष्यों और जानवरों पर कोई प्रभाव नहीं पडे। 
  • प्रत्येक फसल के लिए कीटनाशक की मात्रा और प्रकार भिन्न होता है, इसलिए दवा और गलत मात्रा का छिड़काव अप्रभावी होता हैं। 
• फसल के लिए उपयुक्त कीटनाशक या घुलनशील या विभिन्न प्रकार के कीटनाशक के प्रकार का चयन करना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• कीटनाशक घोल में कुछ साबुन घोल या एक शैम्पू मिलाना उचित है।  यह दवाओं के प्रभाव को अधिक प्रभावी बनाता है। 

छिड़काव करते समय दिशा निर्देश

• कृषि विज्ञान के सलाहकारों या कृषि विज्ञान केंद्र के संयंत्र सुरक्षा वैज्ञानिक से सलाह लेना उपयोगी है, साथ ही कीटनाशक के उपयोग का सही समय जानने के बाद फसल और कीटनाशक नुकसान से बचा सकते हैं। 
  • दवा का छिड़काव करने से पहले छिड़काव उपकरण का अवलोकन किया जाना चाहिए क्योंकि यदि उपकरण में रिसाव होता है तो उपकरण को भली-भांति सुधरवाना चाहिए। 
•  छिड़काव करते हुए बीच बीच में आराम  करना भी फायदेमंद होता है, साथ ही कीटनाशक के छिड़काव के दौरान कोई भी खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। 
• छिड़काव करने से पहले कृषक को चश्मा, हाथों में रबर के दस्ताने, मुंह पर फेसमास्क (जो मुंह को ढंकता है और साँस भी ले सकता है) को आवश्यक निर्देश में कहा गया है।

 छिड़काव के बाद दिशा निर्देश

 • छिड़काव करने के बाद कपड़ों और साबुन से हाथों और पैरों को धोना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए। 
 • छिड़काव के दौरान किसी भी दुर्घटना के मामले में, प्राथमिक चिकित्सा तुरंत दी जानी चाहिए। 
• यदि दवा शरीर पर गिर जाती है तो दवा को निकालने के लिए साफ साबुन से कई बार धोया जाना चाहिए। 
• यदि कीटनाशक पेट में चला गया है, तो रोगी को पहले उल्टी करनी चाहिए और नमक के पानी या गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। 
• यदि रोगी बेहोश या बेहोश हो जाता है तो तुरंत डॉक्टर को बुलाया जाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के अनुसार सही उपचार दिया जाना चाहिए। 

धन्यवाद

Thursday, 19 March 2020

फसल : महत्वपूर्ण किस्में

 नमस्कार । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम भारतीय कृषि में फसलों की उन्नत प्रजातियों के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं ।

  फसलों की उन्नत किस्में

 किस्में अच्छी फसल उन्नत प्रजाति पर निर्भर करती है। जिसकी बुवाई से पहले ही की उन्नत किस्मों की अच्छी समझ होनी किसान के लिए उत्साहित करती है और अच्छी उपज में कारगर साबित होती है। 

1.गेहूं :

एच.डी. 4530, एच.डी. 1925 , डब्ल्यू. एच.147
सोनालिका , कल्याण सोना (एच.डी.एम.1593) , जे.डब्ल्यू.1106 , सोनाली (एच पी 1633) , पी.बी.डब्ल्यू.65 , यू.पी.115 , रोहिणी (सीपीएएन-1676) , एच.यू डब्ल्यू-37 ,एच.यू.डब्ल्यू-213 , गोदावरी (एनआईडीडब्ल्यूसी -295), डीडब्ल्यूआर -17, एमपी -1142 (एसएनएचआईएचएल), एचडी -2581, पुसा बोल्ड (डब्ल्यूआर -544), एनडीडब्ल्यू -1067, मैक -6145, पोरोवा (कमरा 2824), राज 4037, एचडी -2864  , पीबीडब्लू -502, जीडब्ल्यू -366 राज, -4083 इत्यादि 
गेहूं

2.धान :

(भारत में पहली ड्राफ किस्म), IR-8, जया (ब्लास्ट रेसिस्टेंट), पद्मा, मशूरी, काकतीय, पूसा बसुमती, पूसा जलदीदन, लूनीस्री, रत्न, टी.के.एम-6 (स्टेम बोरर रेसिस्टेंट), कटरीबाग (तुंगरो प्रतिरोधी)।  ADT-27 (इंडिका x जपोनिका), सेंटोशॉन्ग (उच्च प्रोटीन सामग्री), डी-गी-वू-जेन, बाला (सूखा प्रतिरोधी), आईआर -20 (ब्लास्ट,  स्टीम बोरर, लीफहॉपर के लिए प्रतिरोधी) , पी.बी-1509, पी.बी-1401, पी.बी-1121, पी.बी-1, पी.बी-1718, की.के.एम-11, राजेंद्र कस्तूरी, राजेंद्र श्वेता, इत्यादि ।
धान

3 मक्का


गंगा-2 , गंगा-5, पी.ए.सी-101, शक्तिमान-3, शक्तिमान-4, विवेक-23, डी-765, अमर इत्यादि।

4 गन्ना
सी.ओ-0118, सी.ओ-98014, सी.ओ-0238, सी.ओ.एस-8436, सी.ओ.जे-85, सी.ओ.पंत-90223, सी.ओ.एच-2201, सी.ओ-997 इत्यादि ।

5 सोयाबीन :
पी.एस-1024, पी.एस-1029, इन्द्रा सोया-9, जे.एस-335, जे.एस-93-05, शिलाजीत, पूसा-16, पूसा-20, पूसा-24, पी.के-327, अंकुर, बिसरा सोय-1, ए.डी.टी-1, अहिल्या-1, अहिल्या-2, अहिल्या-4 इत्यादि।

6. मक्का :
गंगा-2 , गंगा-5, पी.ए.सी-101, शक्तिमान-3, शक्तिमान-4, विवेक-23, डी-765, अमर इत्यादि।

7 देशी चना
 पूसा-09, पूसा-212, पूसा-244, पूसा-240, पूसा-362, पूसा धारवाड़, पूसा-112, पूसा -372 इत्यादि।

 8 कबूली चना
पूसा-1003, पूसा चमत्कार, पूसा-1088, पूसा-1108, पूसा-2024, पूसा-209, गौरव , अजय, सदाबहार, प्रगति , पूसा-1053 इत्यादि।

9 आलू
कुफरी ज्योति, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी बहार, कुफरी चिप्सोना , कुफरी चंद्रमुखी इत्यादि

10 मटर :
रचना, वी.एल मटर-1, वी.एल मटर-45,, अर्पणा, सपना, उत्तरा , प्रगति, हिरा , मुक्ता , बहार, एस.बी.एच-8 , पूसा-33 इत्यादि । 




Wednesday, 18 March 2020

भारतीय फसलों के मौसम व प्रकार : खरीफ, रबी और जायद



  • मस्कार । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम भारतीय कृषि मौसम में मौसम के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। 

भारत में फसलों का मौसम व प्रकार : खरीफ, रबी और जायद 
भारत की फसलें ऋतुओं के आधार पर ही उगाई जाती है। खरीफ ऋतु, रबी ऋतु और जायद है। जिनमें दो प्रमुख फसल मौसम खरीफ मौसम और रबी मौसम हैं जो मानसून पर निर्भर करते हैं।  रबी और खरीफ मौसमों के बीच एक छोटा मौसम होता है जिसे ज़ैद (जायद) का मौसम कहा जाता है।  इन मौसम में पैदा होने वाली फसलें पानी की उपलब्धता और दिन की रोशनी की मात्रा से संबंधित होती हैं। भारत में उत्पादित कृषि फसलें प्रकृति में मौसमी हैं और मॉनसून पर अत्यधिक निर्भर हैं। 
खरीफ का मौसम : खरीफ की फसलों को ग्रीष्मकालीन फसलों के रूप में भी जाना जाता है। धान की फसल इसकी मुख्य फसल है। बरसात के मौसम में खरीफ की फसलों की बुवाई जून से शुरू होकर कटाई सितंबर तक पहुंचती है। 
मुख्य फसलें : धान, बाजरा, मक्का , गन्ना, ज्वार,  सोयाबीन, उड़द, जून , मूंग ,अरहर, कपास इत्यादि। 
नोट : महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल तमिलनाडु, असम , उड़िसा , आंध्र प्रदेश , केरल विधानसभा बिहार के तटीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण  चावल उत्पादक राज्य है। 
रबी का मौसम :
सर्दियों में बुवाई , वसंत में कटाई
 रबी की फसलों को सर्दी के शुरुआती दिनों में बुवाई की जाती है। आमतौर पर रबी फसलों की बुवाई अक्टुबर से लेकर नवंबर तक और दिसम्बर के मध्यम तक होती है। जिनमें छोटे दिन ओर कम बरसात कम सिंचाई फसल के जमाव व बढ़ोतरी के लिए अच्छा रहता है। रबी की फसल में गेहूं मुख्य फसल में आती है। 
मुख्य फसलें : गेहूं , सरसों , जौ , जई , चना , मटर , प्याज , आलू , पालक , मेन्थी , राई इत्यादि। 
नोट : पंजाब , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश , राजस्थान, उत्तराखंड  रबी फसलों के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं।
जायद का मौसम :  फसल बुवाई का समय मार्च ,फसल कटाई मई व जून के मध्यम तक होती है। जायद की फसल अधिकतर वर्षा पर निर्भर करती है। जिसकी बुवाई करने के लिए मानसून का  इंतजार ना कर के अन्य सिंचाई के साधनों के माध्यम से करना चाहिए। जायद की फसलों के जमाव व बढ़ोतरी के लिए गर्म दिन के साथ अधिक सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। जायद की फसलों में मक्का व गन्ना मुख्य फसल है। 
मुख्य फसलें :  मक्का , गन्ना , सूरजमुखी , तरबूज, खीरा , ककड़ी , सब्जियां और चारा फसलें इत्यादि। 
नोट : तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा , गुजरात , मध्य प्रदेश जायद फसलों के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं।
धन्यवाद। 

Tuesday, 17 March 2020

कारोनावायरस : प्रभावित पोल्ट्री, मत्स्य उद्योग

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम कारोनावायरस से प्रभावित पोल्ट्री फार्मिंग व्यवसाय के बारे में चर्चा कर रहे हैं। 
कारोनावायरस से प्रभावित पोल्ट्री मत्स्य  पालन
देश में पोल्ट्री , मीट ओर मत्स्य उद्योग अफवाहों का शिकार हो रहे हैं । कोरोनोवायरस से अफवाह इतनी फैल गई है कि  मांसाहार के माध्यम से कोरोनोवायरस पैर पसार रहा है जिसके कारण पोल्ट्री, मीट ओर मत्स्य  उद्योग बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है जिसके चलते प्रतिदिन 1500-2000 करोड़ रुपए का भारी नुक़सान हो रहा है।  इन उधोगों से जुड़े हुए करीब करीब 5-10 करोड़ लोगों के व्यापार प्रभावित होकर काम काज ठप होने की कगार पर पहुंच गया है। जोकि चिकन मीट खाने से कारोना वायरस के प्रसार की गलत अफवाहों का सामना कर रहे हैं।
     पशुपालन, डेयरी और मत्स्य विभाग के अधिकारियों मुताबिक अंडा, चिकन मीट खाने से कारोना वायरस फैलने की अफवाह फैलाई जा रही है जबकि परीक्षणों में कोई वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित नहीं हुआ है ।
विभाग के अधिकारियों के अनुसार विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पशु-पक्षी से मानव में कारोना वायरस के प्रसार का माध्यम की पुष्टि को नकारते हुए मानव से मानव में फैलने को बताया है।

   इन अफवाहों के कारण अफवाह ने पोल्ट्री, मीट और मत्स्य उद्योग को काफी नुकसान पहुंचाया है और किसानों को थोक मूल्य काफी कम मिल रहा है जोकि चिकन कीमतें 70 प्रतिशत तक गिर गई है।
साथ ही पोल्ट्री उधोगों में  मक्का , सोयाबीन, बाजरा आदि दानो की आपूर्ति ना होने के कारण मध्यम वर्ग लघु वर्गीय किसानों को भी प्रभावित किया है।
भारत का पोल्ट्री उद्योग एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का है और 50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और 1.5 करोड़ लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है।  इस प्रकार, पोल्ट्री उद्योग द्वारा देश में लगभग दो करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है।

धन्यवाद 


Monday, 16 March 2020

फसल पद्धति

फसल पद्धति 
फसल उत्पादन में वृद्धि करने के लिए किसान को फसल पद्धति के अनुसार निश्चय समय में विभिन्न तरीके से फसलों को उगा सकते हैं । फसल पद्धति के अंतर्गत आने वाले तथ्यों को निम्न लिखे लेख से समझ सकते हैं 

1. एक कैलेंडर वर्ष में एक ही भूमि पर दो या दो से अधिक फसलें उगाना कहते हैं - एकाधिक फसल

 2. निश्चित पंक्ति व्यवस्था के साथ 2 या अधिक फसलों को एक साथ उगाना - इंटर क्रॉपिंग कहलाता है

3. साल-दर-साल जमीन के एक टुकड़े पर केवल एक ही फसल उगाना -मोनो क्रॉपिंग कहलाता है

4. एक खेती वर्ष में भूमि के एक ही टुकड़े पर कम या अधिक फसलों को उगाना - अनुक्रमिक फसल कहलाता है
5. खरीफ और रबी के मौसम के बीच की फसलों को उगाने को कहा जाता है - जायद फसल 

6. ऐसी फसलें जो मुख्य रूप से मिट्टी को ढकने के लिए उगाई जाती हैं और नमी बनाये रखना और क्षरण को कम करने के लिए उगाई जाती है - कवर फसल कहलाती हैं

7. उत्तर पूर्वी क्षेत्र के पहाड़ी इलाक़ों में कटाई और जलाने की खेती को कहा जाता है - झूम / खेती को स्थानांतरित करना

8. एक ही भूमि पर एक ही समय में विभिन्न ऊंचाइयों की फसलों को एक साथ उगाने की प्रणाली को कहा जाता है- मैल्टी मंजिला फसल
मल्टी मंजिला क्रॉपिंग का उदाहरण है - नारियल + काली मिर्च + कोको + अनानास




Sunday, 15 March 2020

पीएम किसान मान धन योजना के लिए पंजीकरण

प्रधानमंत्री किसान धन योजना के लिए पंजीकरण शुरू होता है, श्री कृष्ण भवन, नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा।  देश भर के किसानों को वृद्धावस्था पेंशन योजना में शामिल होने की अपील करते हुए, मंत्री ने कहा कि देश के छोटे और सीमांत किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से इस योजना की कल्पना की गई है।  मंत्री ने कहा कि परिचालन दिशानिर्देश राज्यों और कृषि सचिव श्री के साथ साझा किए गए हैं।  संजय अग्रवाल ने इस संबंध में राज्यों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस आयोजित की ताकि योजना की उचित जानकारी का प्रसार और त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

 योजना की मुख्य विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, श्री।  तोमर ने कहा कि 18 से 40 वर्ष के आयु वर्ग के किसानों के लिए यह योजना स्वैच्छिक और अंशदायी है और मासिक पेंशन रु।  60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर उन्हें 3000 / - प्रदान किया जाएगा।  पेंशन निधि में किसानों को रु .5 से रु। 200 तक का मासिक योगदान देना होगा, जब तक कि वे सेवानिवृत्ति की तारीख यानी 60 वर्ष की आयु तक नहीं पहुँच जाते।  केंद्र सरकार पेंशन फंड में भी समान राशि का समान योगदान करेगी।  कोष में अलग-अलग योगदान करने पर पति / पत्नी को रु। 300 / - का अलग पेंशन पाने के लिए भी पात्र है।  भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) पेंशन निधि प्रबंधक और पेंशन भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा।

 मंत्री ने कहा कि, सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले किसान की मृत्यु के मामले में, पति या पत्नी मृतक किसान की शेष आयु तक शेष योगदान का भुगतान करके योजना में जारी रह सकते हैं।  यदि पति या पत्नी जारी रखने की इच्छा नहीं रखते हैं, तो किसान द्वारा ब्याज के साथ किए गए कुल योगदान का भुगतान जीवनसाथी को किया जाएगा।  यदि कोई पति या पत्नी नहीं है, तो ब्याज के साथ कुल योगदान नामांकित व्यक्ति को भुगतान किया जाएगा।  यदि किसान सेवानिवृत्ति की तारीख के बाद मर जाता है, तो पति या पत्नी को परिवार पेंशन के रूप में पेंशन का 50% प्राप्त होगा।  किसान और पति या पत्नी दोनों की मृत्यु के बाद, संचित कोष पेंशन कोष में वापस जमा किया जाएगा।  लाभार्थी स्वेच्छा से 5 वर्षों के नियमित योगदान के बाद योजना से बाहर निकलने का विकल्प चुन सकते हैं।  बाहर निकलने पर, उनके पूरे योगदान को LIC द्वारा प्रचलित बचत बैंक दरों के बराबर ब्याज के साथ वापस कर दिया जाएगा।

 किसान, जो पीएम-किसान योजना के लाभार्थी भी हैं, उनके पास उस योजना के लाभ से सीधे अपने योगदान की अनुमति देने का विकल्प होगा।  नियमित योगदान करने में चूक के मामले में, लाभार्थियों को निर्धारित ब्याज के साथ बकाया राशि का भुगतान करके योगदान को नियमित करने की अनुमति है।  योजना का प्रारंभिक नामांकन विभिन्न राज्यों में कॉमन सर्विस सेंटरों के माध्यम से किया जा रहा है।  बाद में पीएम-किसान राज्य नोडल अधिकारियों या किसी अन्य माध्यम से नामांकन की वैकल्पिक सुविधा या ऑनलाइन नामांकन भी उपलब्ध कराया जाएगा।  नामांकन मुफ्त है।  कॉमन सर्विस सेंटर प्रति नामांकन रू .30 / - का शुल्क लेंगे जो सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

 एलआईसी, बैंकों और सरकार की उचित शिकायत निवारण प्रणाली होगी।  योजना की निगरानी, ​​समीक्षा और संशोधन के लिए सचिवों की एक अधिकार प्राप्त समिति का भी गठन किया गया है।

 श्री तोमर ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री किसान निधि के तहत इस वर्ष के लिए 10 करोड़ लाभार्थियों का लक्ष्य हासिल किया जाएगा।  मंत्री ने कहा कि अब तक, 5, 88,77,194 और 3,40,93,837 किसानों के परिवारों ने क्रमशः पीएम-किसान योजना के तहत पहली और दूसरी किस्त का लाभ उठाया है।

 स्रोत: https: //pib.gov.in/