नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ने की खेती में आने वाली मुख्य बीमारियों तथा उनके लक्षण व उपचार हेतु सहायक जानकारी साझा कर रहे हैं।
गन्ना ग्रेमीनी कुल के अंतर्गत आता है। गन्ने की फसल को लगभग साठ प्रकार की बीमारियां संक्रमित करने के लिए को जाना जाता है।
इन रोगो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 20-25% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन बीमारियो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए इन बीमारियो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।
फंफूदी , जिवाणु , वायरस इन तीन प्रकार से उत्पन्न होते हैं तथा फसल को पानी , बीज और मृदा के माध्यम से प्रभावित करते हैं।जोकि पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना बीज की बुआई से और खेत में पानी के ठहरने से फसल को संक्रमित करते हैं।
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य बीमारियों व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है।
गन्ना |
इन रोगो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 20-25% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन बीमारियो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए इन बीमारियो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।
फंफूदी , जिवाणु , वायरस इन तीन प्रकार से उत्पन्न होते हैं तथा फसल को पानी , बीज और मृदा के माध्यम से प्रभावित करते हैं।जोकि पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना बीज की बुआई से और खेत में पानी के ठहरने से फसल को संक्रमित करते हैं।
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य बीमारियों व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है।
मुख्य रोग - रोग कारक
लाल सड़न - कोलटोट्राइकम फाल्काटम ( फंफूदी)
लाल सड़न - कोलटोट्राइकम फाल्काटम ( फंफूदी)
विल्ट ( उटका रोग) - सिफैलो स्पोरियम (फंफूदी)
स्मट (कंडुआ रोग) - अस्टीलागो सिटामिनी (फंफूदी)
पोक्खा बोइंग - जीनस फ्यूजेरियम
ग्रासीय शूट - फाइटोप्लाज्मा (जिवाणु)
लाल सड़न ( रेड रॉट ) : यह गन्ने की बहुत ही घातक फंफूद जनक बीमारी है। गन्ने का लाल सड़न कोलटोट्राइकम फाल्काटम वेंट फंफूदी जनक के कारण होता है। इसे गन्ने का कैंसर और गन्ने का काना रोग भी कहा जाता है। जोकि गन्ने की फसल को बीज , मृदा और जल के ठहरने के कारण संक्रमित करते हैं। फंफूद जनक रोग गन्ने की फसल में आने पर पूरी फसल व प्रजाति को क्षति पहुंचाने के साथ ही शुगर की मात्रा को भी प्रभावित करता है।
लाल सड़न रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी तीसरी-चौथी पत्ती सुखकर पीली पड़ने लगती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों पर लाल-भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं।
• संक्रमित गन्ना आसानी से टूट जाता है।
• जब गन्ने को काटते हैं तो गन्ना अंदर से सड़ा हुआ निकलता है और उसमें से एल्कोहल और सिरके जैसी गन्ध आती है।
• यह जुलाई से फसल के अंत तक लगता है। और फसल को नुक्सान पहुंचाता है।
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी तीसरी-चौथी पत्ती सुखकर पीली पड़ने लगती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों पर लाल-भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं।
• संक्रमित गन्ना आसानी से टूट जाता है।
• जब गन्ने को काटते हैं तो गन्ना अंदर से सड़ा हुआ निकलता है और उसमें से एल्कोहल और सिरके जैसी गन्ध आती है।
• यह जुलाई से फसल के अंत तक लगता है। और फसल को नुक्सान पहुंचाता है।
लाल सड़न रोग के उपचार हेतु :
• गन्ने के लाल सड़न बीमारी का कोई प्रभावी रोकथाम का इलाज नहीं हुआ है।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
• गन्ने के लाल सड़न बीमारी का कोई प्रभावी रोकथाम का इलाज नहीं हुआ है।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
गन्ने का उकटा रोग ( विल्ट) : इसे गन्ने का सूखा रोग भी कहते है। यह सिफैलो स्पोरियम फंफूदी जनक
के कारण होता है।
के कारण होता है।
गन्ने का उकटा रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी पत्ती सूखने लगती है।
• पत्तियों पर सफेद-भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• यदि गन्ने को नोड से तोड़ते हैं तो टूटता नही लचक जाता है।
• गन्ने के अन्दर से लाल मटमैली धारियां दिखाई देती है जिनमें कोई गन्ध नहीं आती।
• यह गन्ने की फसल में अक्टुबर से फसल के अंत तक लगता है।
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी पत्ती सूखने लगती है।
• पत्तियों पर सफेद-भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• यदि गन्ने को नोड से तोड़ते हैं तो टूटता नही लचक जाता है।
• गन्ने के अन्दर से लाल मटमैली धारियां दिखाई देती है जिनमें कोई गन्ध नहीं आती।
• यह गन्ने की फसल में अक्टुबर से फसल के अंत तक लगता है।
गन्ने का उकटा रोग के उपचार हेतू :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
गन्ने का कण्डुआ रोग ( स्मट ) : यह रोग अस्टीलागो सिटामिनी फंफूद जनक है। यह गन्ने की फसल में बुवाई के 2-3 माह लगकर फसल की बढ़ोत्तरी को नुक्सान पहुंचाता है।
कण्डुआ रोग के लक्षण :
• फसल के शुरुआत में ही 2-3 महिने में दिखाई देता है।
• संक्रमित पौधे की पत्तियां सुख कर काली पड़ कर चमक दिखाई देती है।
• संक्रमित पौधे के पौधे की पत्तियों पर काले भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• अपने अनुकूल परिस्थितियों में पूरी फसल के प्रत्येक पौधे को संक्रमित कर क्षति पहुंचाता है।
• यह अप्रेल से जून तथा अक्टुबर से नवम्बर तक रोग का अधिक प्रकोप होता है।
• फसल के शुरुआत में ही 2-3 महिने में दिखाई देता है।
• संक्रमित पौधे की पत्तियां सुख कर काली पड़ कर चमक दिखाई देती है।
• संक्रमित पौधे के पौधे की पत्तियों पर काले भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• अपने अनुकूल परिस्थितियों में पूरी फसल के प्रत्येक पौधे को संक्रमित कर क्षति पहुंचाता है।
• यह अप्रेल से जून तथा अक्टुबर से नवम्बर तक रोग का अधिक प्रकोप होता है।
कंण्डुआ रोग के उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
गन्ने की पत्तियां |
गन्ने का पोक्खा रोग ( पोक्खा बोइंग ) :
पोक्खा बोइंग गन्ने का फंफूद जनक रोग है। जो गन्ने की फसल में बढ़ोतरी और पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है ।
पोक्खा बोइंग गन्ने का फंफूद जनक रोग है। जो गन्ने की फसल में बढ़ोतरी और पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है ।
पोक्खा बोइंग के लक्षण :
• पोक्खा बोइंग का प्रकोप जूलाई से अक्टुबर के मध्य अधिक बढ़ जाता है।
• संक्रमित गन्ने की शीर्ष पत्तियां पीली व सफेद होने के बाद लाल भूरे रंग के होकर टूट जाती है।
• संक्रमित गन्ने का शीर्ष भाग पतला होकर खत्म हो जाता है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां आपस में लिपटे हुए होती है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां सिकुड़ कर सुखने लगती है।
• पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
• पोक्खा बोइंग का प्रकोप जूलाई से अक्टुबर के मध्य अधिक बढ़ जाता है।
• संक्रमित गन्ने की शीर्ष पत्तियां पीली व सफेद होने के बाद लाल भूरे रंग के होकर टूट जाती है।
• संक्रमित गन्ने का शीर्ष भाग पतला होकर खत्म हो जाता है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां आपस में लिपटे हुए होती है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां सिकुड़ कर सुखने लगती है।
• पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
गन्ने का पोक्खा रोग उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• प्रति एकड़ कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (बालिटाक्स, ब्लू कॉपर) को 300 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में कॉपर ओक्सीक्लोराइ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• प्रति एकड़ कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (बालिटाक्स, ब्लू कॉपर) को 300 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में कॉपर ओक्सीक्लोराइ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।
गन्ने का घासीय प्ररोह रोग ( ग्रासी शूट ) : यह फाइटोप्लाज्मा नामक जिवाणु जनित रोग है। यह गन्ने का पत्तियों का पीत रोग से भी जाना जाता है।
घासीय प्ररोह रोग के लक्षण :
• पत्ती झुन्डो में निकलती हैं और अधिकतर पेड़ी फसल को नुक्सान करती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों में अचानक से फुटाव होकर झाड़ू के आकार में आ जाती है।
• रोगी पौधे से पतले पतले प्ररोह निकलने लगते हैं।
• रोगी पौधे की पत्तियां सफेद पीलेपन में होकर छोटी हो जाती है।
• पत्ती झुन्डो में निकलती हैं और अधिकतर पेड़ी फसल को नुक्सान करती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों में अचानक से फुटाव होकर झाड़ू के आकार में आ जाती है।
• रोगी पौधे से पतले पतले प्ररोह निकलने लगते हैं।
• रोगी पौधे की पत्तियां सफेद पीलेपन में होकर छोटी हो जाती है।
घासीय प्ररोह रोग के उपचार हेतु :
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको यह लेख से जानकारियां मिली हैं। हमारी त्रृटि अपने सुझाव तथा मार्गदर्शन आदि के लिए हमें लिखें updateagriculture@gmail.com
और देखें गन्ना : पेड़ी प्रबन्धन
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