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Wednesday, 2 September 2020

पीएम किसान सम्मान निधि योजना - छठी किस्त की लाभान्वित स्थिति

नमस्कार , मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है। आज हम आपके साथ #पीएमकिसानयोजना के अंतर्गत आयी छठी किस्त के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।



प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत छठी किस्त की राशि 2000 रुपए जारी किए गए हैं।  यह राशि किसानों के बैंक खाते में सीधे जमा की गई है, जिससे देश भर में 8.5 करोड़ किसानों को लाभ मिला है।

  केंद्र सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत नामांकित हर किसान को सालाना 6000 रुपये का लाभ होता है।  यह राहत सम्मान राशि 2000 रुपये सालाना तीन किस्तों में सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा की जाती है।

  पिछले दिनों में, #पीएम किसान सम्मान निधि योजना की #छठीकिस्त के 2000 रुपये सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा किए गए हैं।
  अब यह देखा जा रहा है कि किस तरह से लाभान्वित किसान अपने बैंक खाते में जमा 2000 रुपये की किस्त को यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उन्हें पीएम किसान योजना से लाभ हुआ है या नहीं।

  लाभान्वित स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए, केंद्र सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना की किसानों के लाभ के लिए एक आधिकारिक वेबसाइट बनाई है।
   पीएम किसान योजना की आधिकारिक वेबसाइट के दाहिने कोने के किसान कोने में जाना है ।
  इसके बाद, लाभान्वित स्थिति में जाएं।
  इसके बाद, किसान को अपना आवश्यक विवरण भरना होगा जैसे कि फ़ोन नंबर, आधार कार्ड नंबर, राज्य, जिला आदि।
  जानकारी भरने के बाद, किसान को अपने लाभान्वित स्थिति की एक रिपोर्ट मिलती है।

  वेबसाइट:   https://pmkisan.gov.in

     पीएम #किसानयोजना की लाभान्वित स्थिति सीधा जानकारी के लिए किसान यहां  क्लिक करें 

  साथ ही, आधिकारिक फोन नंबर भी जारी किए गए हैं।
  केंद्र सरकार ने पीएम किसान योजना के लाभान्वित स्थिति की सूचनाओं को और अधिक सरल बनाने के लिए आधिकारिक फोन नंबर भी जारी किए हैं।



 इन फोन नंबरों पर संपर्क करके किसान को अपनी जानकारी जैसे राज्य, जिला, ब्लॉक, आधार कार्ड नंबर, फोन नंबर आदि देना होता है और जानकारी साझा करने के बाद किसान लाभान्वित स्थिति की रिपोर्ट #किसान को मिल जाती है।

  फ़ोन नंबर :
  पीएम किसान सम्मान निधि योजना टोल फ्री हेल्पलाइन - 18001155266

  पीएम किसान सम्मान निधि योजना हेल्पलाइन नंबर : 011-23381092, 23382401

   इन वेबसाइटों और फोन नंबरों पर संपर्क करने पर किसान अपनी लाभान्वित स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

आपका आभार । आशा करते हैं हमारे छोटे से लेख से किसान को उचित जानकारी मिली है । साथ ही अपने सुझाव हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

धन्यवाद ।

Monday, 31 August 2020

मौसम पूर्वानुमान : 1-4 सितंबर

नमस्कार। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है। आज हम आपके साथ भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी किए गए आगामी चार दिन की की #मौसमपूर्वानुमान संभावना के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। 



  भारत #मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार जारी 1-4 सितंबर 2020 का #मौसमपूर्वानुमान इस प्रकार है। 

01-04 सितंबर, 2020 के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में गरज के साथ बहुत भारी वर्षा होने की संभावना बताई गई है । राजस्थान और आसपास के स्थान पर मध्यम गरज के साथ अगले 24 घंटों के दौरान  में हल्की से मध्यम बारिश की संभावना है।  अगले 24 घंटों के दौरान उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली और पश्चिम उत्तर प्रदेश में तेज ठंडी हवाएं (20-30 किमी प्रति घंटे तक पहुंचने की संभावना) हैं

1 सितंबर: • तमिलनाडु, पुदुचेरी और करिकुल में अलग-अलग स्थानों पर भारी से बहुत भारी वर्षा होने की संभावना है। साथ ही पंजाब, हरयाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, और सिक्किम, ओडिशा, असम  मेघालय, रायलसीमा, दक्षिण आंतरिक कर्नाटक और केरल और माहे के अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा होने की संभावना बताई गई है। 
  • आंधी-तूफान के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, गंगीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तटीय आंध्र प्रदेश , तेलंगाना, रायलसीमा और तमिलनाडु, पुदुचेरी पर अलग-अलग स्थानों पर बिजली गिरने की संभावना है।
 • दक्षिण पश्चिम अरब सागर के ऊपर तेज हवा (गति 45-55 किमी प्रति घंटे तक)।  फिशमैन को इन क्षेत्रों में उद्यम न करने की सलाह दी जाती है।

  02 सितंबर: • जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश में अलग-थलग स्थानों पर भारी वर्षा की संभावना है। साथ ही उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तटीय आंध्र प्रदेश , रूयलसीमा, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुदुचेरी केरल और माहे में अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा की संभावना है।
 • उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखंड, तटीय आंध्र प्रदेश,  तेलंगाना, रायलैंसमा और तमिलनाडु, पुदुचेरी पर अलग-अलग स्थानों पर बिजली गिरने की संभावना है।
  • दक्षिणपश्चिमी अरब सागर के ऊपर तेज हवा (गति 45-55 किमी प्रति घंटे तक)।  मछुआरों को सलाह दी जाती है कि वे इन क्षेत्रों में उद्यम न करें।

 03 सितंबर: जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, रायलसीमा, कोंटल और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु, पुदुचेरी और केरल और माहे में पृथक स्थानों पर भारी वर्षा होने की संभावना है।
  • उत्तराखंड, राजस्थान उत्तर प्रदेश, झारखंड, आंध्र प्रदेश , रायलसीमा और तमिलनाडु, पुदुचेरी पर अलग-अलग स्थानों पर तुफान के साथ बिजली गिरने की संभावना है।

 04 सितंबर: जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दक्षिण कर्नाटक, तमिलनाडु, पुदुचेरी, और केरल और माहे में अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा की संभावना है।
 • उत्तराखंड , राजस्थान , उत्तर प्रदेश , झारखंड तटीय आंध्र प्रदेश , रायलसीमा और तमिलनाडु, पुडुचेरी कराईकल में अलग-अलग स्थानों पर बिजली गिरने के साथ-साथ गरज की संभावना है। 

धन्यवाद। 

Sunday, 19 April 2020

गन्ना : प्रमुख कीट व उपचार

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ना फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मुख्य कीटो के बारे में तथा नियंत्रण उपचार हेतु जानकारी साझा कर रहे हैं। 

हमारे देश में गन्ना मुख्य फसल है। नगदी फसल होने के कारण ही कृषक अन्य फसलें की अपेक्षा गन्ना फसल की बुवाई करना पसंद करते हैं। 
गन्ना ग्रेमीनी कुल के अंतर्गत आता है। गन्ने की फसल को लगभग 200 प्रकार के कीट संक्रमित करने के लिए को जाना जाता है। इन कीटो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 35-45% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन कीटो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए  इन कीटो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।


गन्ने की फसल में अच्छा उत्पादन करने के लिए गन्ने के कीटो के बारे में जानकारी तथा उपचार हेतु सहायक जानकारी अति आवश्यक हो जाता है। कीट नियंत्रण करने से फसल की पैदावार और बढ़ोतरी का योगदान 50-60% के अंतर्गत आता है। गन्ने की खेती के लिए कुशल कीट प्रबन्धन ही अति आवश्यक हो जाता है। 

न्ने में कीट गन्ना बुवाई से लेकर फसल की कटाई तक फसल में भूमिगत कीट , पत्ती एवं तना चूसक कीट , पत्ती खाने वाले कीट आदि कीट विभिन्न अवस्थाओं में फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। यदि जिनका समय रहते उपचार हेतु उपाय नहीं कराते हैं तो गन्ना फसल को नष्ट कर देते हैं। जिसका सीधा प्रभाव फसल की पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है। 

गन्ने की प्रमुख कीटो की जानकारी एवं रोकथाम 

पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना  बीज की बुआई से फसल को संक्रमित करते हैं। 
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य कीट व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है। 

मुख्य कीट 

• दीमक 

• सफेद गिडार ( व्हाईट ग्रब )

• मिली बग 

• अंकुर बेधक ( कन्सुआ )

• चोटी/शीर्ष बेधक ( टॉप बोरर )

• तना बेधक ( रूट बोरर )

• जड़ बेधक ( शूट बोरर )

• पायरिला

1. दीमक -: 

ये सामाजिक कीड़े हैं जो झुंडो में रहते हैं। वर्ष भर गन्ने की फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। और अधिकतर मानसून के समय में मिट्टी में प्रवेश करते है। जब दीमक गन्ने पर हमला करती है, तो संक्रमित पौधों की पुरानी पत्तियां पहले सूखने लगती हैं और गन्ने को खोखला कर मिट्टी भर जाती है।  पौधों की पैदावार में भारी कमी होती है। अगर दीमक के संक्रमण का समय रहते पता नहीं लगाया गया और नियंत्रित किया गया तो पूरी फसल नष्ट हो सकती है। 

दीमक कीट

दीमक नियंत्रण के उपाय हेतु : 

 गन्ने में दीमक के नियंत्रित हेतु  निम्नलिखत नियंत्रण उपायों को अपनाया जा सकता है:

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं। 

• गन्ने की फसल में दीमक का प्रकोप कम करने के लिए खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहना चाहिए।

• रोपण के समय, फर्र में बीज को लेसेन्टा @ 150 ग्राम / एकड़ के साथ 400 लीटर पानी में भीगना चाहिए। 

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , इमिडाक्लोपरिड 1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

•  रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।

2. सफेद गिडार/ ग्रब ( व्हाईट ग्रब ) -:  

सफेद ग्रब गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है, सफेद ग्रब भूरे रंग का झुर्रीदार होता है। फरवरी से अक्टुबर तक अधिक प्रकोप होता है।  और जब अटैक करते हैं तो गन्ने की जड़ों और गुठलियां खाने लगती है जिससे पत्तियां धीरे धीरे पीली पड़ने लगती है और फसल का बड़ा हिस्सा सूखने पर मरने लगता है।


सफेद गिडार के  नियंत्रण के उपाय हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं। 

• गन्ने के बीज को 125 लीटर पानी में कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड) @ 125 मिली / एकड़ के साथ उपचारित किया जा सकता है।  

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट / मोनोक्रोटोफोस , इमिडाक्लोपरिड 1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए।

• रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


3. मिली बग -:

 मिली बग के कीड़े मुख्य रूप से आम कीट हैं, लेकिन गन्ने में उनके संक्रमण को मामूली से गंभीर रूप में देखा गया है।

यह गुलाबी रंग की होते है और सफेद मोमी कोटिंग के साथ एक अंडाकार अच्छी तरह से खंडित शरीर होता है।  मिली बग युवा गन्ने के निचले नोड्स में पाए जाते हैं और पत्ती म्यान द्वारा संरक्षित होते हैं। निम्फ और वयस्क फसल को चूसते हैं और फसल की जीवन शक्ति को कम करते हैं, जिस पर कालिख का साया बढ़ता है, पत्तियां काली दिखाई देती हैं और गन्ने की वृद्धि मंद होती है।

मिली बग

 मिली बग के नियंत्रण उपचार हेतु -:   

प्रारंभिक चरण में इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है जबकि बाद के चरण में इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और पूरे गन्ना क्षेत्र को नुकसान हो सकता है।  प्रारंभ में, नीम के तेल का उपयोग करें @ 250 मिली लीटर इमिडाक्लोप्रिड @ 375 मिली / हेक्टेयर या नीम के तेल + एसेटामिप्रीड @ 250 ग्राम / एकड़ के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

• मिली बग के नियंत्रण के लिए कुशल पेड़ी प्रबन्धन कर फसल के अवशेषों को खेत से बाहर निकल दिया जाना चाहिए। 

• गन्ने के बीज को 125 लीटर पानी में कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड) @ 125 मिली / एकड़ के साथ उपचारित किया जा सकता है।

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


4. अंकुर बेधक ( कन्सुआ ) -: 

अंकुर बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है यह गन्ने के बुवाई के 1-2 माह में ही दिखने लगता है। जिसका प्रकोप मार्च से जून तक अधिक बढ़ जाता है। इसकी सूड़ियां गन्ने के प्ररोह में जमीन के नीचे वाले भाग में छिद्र बनाकर प्रवेश करते है और क्षतिग्रस्त कर देती हैं गन्ना पौधे की उपरी पत्ती सुखकर काली पड़ जाती है। सुखी हुई पत्ती को गोफ आसानी से खिंचने पर सडी हुई बाहर आ जाती हैं और विषैली गन्ध आती है। प्रारंभिक चरण में इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है जबकि बाद के चरण में इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और पूरे गन्ना क्षेत्र को नुकसान हो सकता है।


अंकुर बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• यदि गन्ने की फसल में अंकुर बेधक के लक्षण दिखाई देते हैं तो खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहे।

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  फोरेट 10 जी / फेवनलरेट 0.4 % धूल क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

•  रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


5. चोटी/शीर्ष बेधक ( टॉप बोरर ) -: 

चोटी बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है।  आमतौर पर शीर्ष से दूसरे से पांचवें पत्ते तक पहुंचता है। पत्तियों पर शॉट छोटे छोटे लाल भूरे लाल छेद के रूप में दिखाई देती हैं। तथा पत्ती को खिंचने पर इसे आसानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। जिसके प्रकोप से पूरी फसल प्रभावित हो जाती है। जिससे गन्ने की पैदावार के साथ ही चीनी की मात्रा को कम करता है। 


चोटी/शीर्ष बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• गन्ना फसल में यह सुनिश्चित करें कि खेत में सिंचाई का पानी ना ठहराया जाए। उचित जल निकासी की व्यवस्था कर चोटी बेधक के नियंत्रण में सहायक होता है। 

• मई के अंतिम सप्ताह में, कोरेगन @ 150 मिलीलीटर प्रति एकड़ 400 लीटर पानी में घोलकर सूखे खेत में पौधे के जड़ क्षेत्र के पास और कीटनाशक को गीला करने के 24 घंटे के भीतर सिंचाई करें।  

• यदि भीगना संभव नहीं है, तो कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जून के मध्य में  जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

•  रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


6. तना बेधक ( रूट बोरर ) -: 

तना बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है। इसकी सुंडी गन्ने के किसी भी भाग से प्रवेश हो जाती है। और एक गन्ने में बहुत ही सुंडी हो जाती है।  यह अगस्त से फ़रवरी में छोटे गन्ने के पौधों को नुक्सान पहुंचाता है। जिसका सीधा असर फसल की बढ़ोतरी पर पड़ता है। पत्तियों पर छोटे छोटे छिद्र बन जाते हैं। और ग्रस्त पत्ती पीली नारंगी रंग की परत जैसे हो जाती है। जिसका समय रहते उपचार नहीं कराते तो पूरी फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। 


तना बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  फोरेट 10 जी / फेवनलरेट 0.4 % धूल क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

• कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें। 


7. जड़ बेधक ( शूट बोरर ) -: 

जड बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है। इसकी सुंडी गन्ने के जड़ से प्रवेश कर पत्तियों को क्षति पहुंचाती है , जिसके कारण पत्तियों के किनारे उपर से नीचे पीली पड़ने लगती है। जब गन्ने को उखाड़ते है तो जड़ में छिद्र किये हुए सुंडी पाई जाती है।


जड़ बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• गन्ना बुवाई के तीन माह में ही मिट्टी चढ़ाएं जिससे जड़ बेधक के नियंत्रण करता है। 

• यदि गन्ने की फसल में जड़ बेधक के लक्षण दिखाई देते हैं तो खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहे। 

• कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है।


8• पायरीला -:

  इसे आमतौर पर लीफ हॉपर और गन्ने का फुदका  (पाइरिला पेरपुसिला) के रूप में जाना जाता है, ये हल्के भूरे रंग के होते हैं।  मई-जून में उच्च आर्द्रता, भारी खाद और सिंचाई कीट के गुणन के पक्ष में है। निम्फ और वयस्क पत्तियों से चूसते हैं।  गंभीर मामलों में, पत्तियां मुरझा जाती हैं और सूख जाती हैं। पौधे बीमार और धुंधला दिखाई देते हैं। जिस पर कालिख का सांचा विकसित होता है। सुक्रोज सामग्री कम हो जाती है। 

पाइरिला के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• फसल में पाइरिला रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट / मोनोक्रोटोफोस , इमिडाक्लोपरिड1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

• अंडे वाले पत्तों को तोड़कर नष्ट कर पाइरिला के नियंत्रण में सहायक होता है। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको यह लेख से उचित मिली हैं। अपने सुझाव आदि हमें कमेन्ट करें या हमें लिखें updateagriculture@gmail.com


और देखें गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार
            गन्ना : पेड़ी प्रबन्धन
             फसल चक्र

Thursday, 9 April 2020

फसल चक्र

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम फसल चक्र के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। 

फसल चक्र क्या है? 
 फसल रोटेशन खेत के विभिन्न क्षेत्रों में फसल बोने की एक तकनीक है, जहाँ एक ही खेत में साल-दर-साल अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं। ताकि मिट्टी में अच्छे गुणों को संरक्षित किया जा सके और मिट्टी स्वस्थ और उपजाऊ बनी रहे। इसे फसल चक्र कहा जाता है।



फसल चक्र के सिद्धांत
 1 रेशेदार जड़ प्रणाली के साथ पालन किया जाना चाहिए। यह मिट्टी से पोषक तत्वों के उचित व समान उपयोग में मदद करता है।  
2. फलीदार फसलें को गैर-फलीदार फसलों के बाद उगाई जानी चाहिए।  फलियां मिट्टी को अवशोषित करती हैं और अधिक अकार्बनिक सामग्री जोड़कर मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करती हैं। 
 3. कम विस्तृत फसलों के बाद अधिक विस्तृत फसलों का पालन करना चाहिए।
 4. एक आदर्श फसल रोटेशन वह है जो परिवार के खेत श्रम को अधिकतम रोजगार प्रदान करता है, कृषि मशीनरी उपकरण कुशलता से उपयोग किया जाता है।  
 5.  चयनित फसलों को मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।
6. फसलों का चयन किसान की वित्तीय स्थितियों के अनुरूप होना चाहिए। 

 फसल रोटेशन के लाभ
 • मृदा उर्वरता को वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करके बहाल किया जाता है।
• मृदा भौतिक-रासायनिक गुणों में सुधार तथा गतिविधि को प्रोत्साहित करती है।
• विषाक्त पदार्थों के संचय से बचा जाता है।  
• मृदा को क्षरण से बचाया जाता है। 
• कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करता है।
• खेतों में खरपतवारों को नियंत्रित करता है। 
• मृदा की उर्वरता को बढ़ाता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। 
 • उथली और गहरी जड़ वाली फसलें मिट्टी से अलग-अलग गहराई पर पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं।  
• मृदा कीट जो पौधों के एक परिवार पर निशाना साधते  हैं, हर साल भोजन के स्रोत में बदलाव के रूप में बाधा बन जाते हैं।  
• फसल की पैदावार बढ़ाता है - यह पाया जाता है कि फसल रोटेशन से एक ही मौसमी फसल से प्राप्त फसल में वृद्धि होती है।  
• मिट्टी के पोषक तत्वों में वृद्धि- यह मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों को जोड़ने या अवशोषित करने में मदद करता है।  
• वर्षा का प्रभाव जो पानी से मिट्टी के कटाव को कम करता है और पानी से सामान्य कटाव करता है क्योंकि पौधों की जड़ें मिट्टी की ऊपरी परत को एक साथ रखती हैं।




Tuesday, 7 April 2020

गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ने की खेती में आने वाली मुख्य बीमारियों तथा उनके लक्षण व उपचार हेतु सहायक जानकारी साझा कर रहे हैं।

गन्ना 
गन्ना ग्रेमीनी कुल के अंतर्गत आता है। गन्ने की फसल को लगभग साठ प्रकार की बीमारियां संक्रमित करने के लिए को जाना जाता है।
इन रोगो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 20-25% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन बीमारियो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए  इन बीमारियो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।

फंफूदी , जिवाणु , वायरस इन तीन प्रकार से उत्पन्न होते हैं तथा फसल को पानी , बीज और मृदा के माध्यम से प्रभावित करते हैं।जोकि पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना  बीज की बुआई से और खेत में पानी के ठहरने से फसल को संक्रमित करते हैं।
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य बीमारियों व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है।
मुख्य रोग       -         रोग कारक

लाल सड़न  - कोलटोट्राइकम फाल्काटम ( फंफूदी)

विल्ट ( उटका रोग) - सिफैलो स्पोरियम (फंफूदी)

स्मट (कंडुआ रोग) - अस्टीलागो सिटामिनी (फंफूदी)

पोक्खा बोइंग - जीनस फ्यूजेरियम

ग्रासीय शूट - फाइटोप्लाज्मा (जिवाणु)

लाल सड़न ( रेड रॉट ) : यह गन्ने की बहुत ही घातक फंफूद जनक बीमारी है।  गन्ने का लाल सड़न कोलटोट्राइकम फाल्काटम वेंट फंफूदी जनक के कारण होता है। इसे गन्ने का कैंसर और गन्ने का काना रोग भी कहा जाता है।   जोकि गन्ने की फसल को बीज , मृदा और जल के ठहरने के कारण संक्रमित करते हैं। फंफूद जनक रोग गन्ने की फसल में आने पर पूरी फसल व प्रजाति को क्षति पहुंचाने के साथ ही शुगर की मात्रा को भी प्रभावित करता है।

लाल सड़न रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी तीसरी-चौथी पत्ती सुखकर पीली पड़ने लगती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों पर लाल-भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं।
• संक्रमित गन्ना आसानी से टूट जाता है।
• जब गन्ने को काटते हैं तो गन्ना अंदर से सड़ा हुआ निकलता है और उसमें से एल्कोहल और सिरके जैसी गन्ध आती है।
• यह जुलाई से फसल के अंत तक लगता है। और फसल को नुक्सान पहुंचाता है।

लाल सड़न रोग के उपचार हेतु :
• गन्ने के लाल सड़न बीमारी का कोई प्रभावी रोकथाम का इलाज नहीं हुआ है।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का उकटा रोग ( विल्ट) : इसे गन्ने का सूखा रोग भी कहते है। यह सिफैलो स्पोरियम फंफूदी जनक
के कारण होता है।

गन्ने का उकटा रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी पत्ती सूखने लगती है।
• पत्तियों पर सफेद-भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• यदि गन्ने को नोड से तोड़ते हैं तो टूटता नही लचक जाता है।
•  गन्ने के अन्दर से लाल मटमैली धारियां दिखाई देती है जिनमें कोई गन्ध नहीं आती।
• यह गन्ने की फसल में अक्टुबर से फसल के अंत तक लगता है।

गन्ने का उकटा रोग के उपचार हेतू :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का कण्डुआ रोग ( स्मट ) : यह रोग अस्टीलागो सिटामिनी फंफूद जनक है। यह गन्ने की फसल में बुवाई के 2-3 माह लगकर फसल की बढ़ोत्तरी को नुक्सान पहुंचाता है।

कण्डुआ रोग के लक्षण : 
• फसल के शुरुआत में ही 2-3 महिने में दिखाई देता है।
• संक्रमित पौधे की पत्तियां सुख कर काली पड़ कर चमक दिखाई देती है।
• संक्रमित पौधे के पौधे की पत्तियों पर काले भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• अपने अनुकूल परिस्थितियों में पूरी फसल के प्रत्येक पौधे को संक्रमित कर क्षति पहुंचाता है।
• यह अप्रेल से जून तथा अक्टुबर से नवम्बर तक रोग का अधिक प्रकोप होता है।

कंण्डुआ रोग के उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने की पत्तियां

गन्ने का पोक्खा रोग ( पोक्खा बोइंग ) :
 पोक्खा बोइंग गन्ने का फंफूद जनक रोग है। जो गन्ने की फसल में बढ़ोतरी और पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है ।

पोक्खा बोइंग के लक्षण :
• पोक्खा बोइंग का प्रकोप जूलाई से अक्टुबर के मध्य अधिक बढ़ जाता है।
• संक्रमित गन्ने की शीर्ष पत्तियां पीली व सफेद होने के बाद लाल भूरे रंग के होकर टूट जाती है।
• संक्रमित गन्ने का शीर्ष भाग पतला होकर खत्म हो जाता है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां आपस में लिपटे हुए होती है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां सिकुड़ कर सुखने लगती है। 
• पौधे की वृद्धि रूक जाती है।

गन्ने का पोक्खा रोग उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• प्रति एकड़ कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (बालिटाक्स, ब्लू कॉपर) को 300 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में कॉपर ओक्सीक्लोराइ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का घासीय प्ररोह रोग ( ग्रासी शूट ) : यह फाइटोप्लाज्मा नामक जिवाणु जनित रोग है। यह गन्ने का पत्तियों का पीत रोग से भी जाना जाता है।

घासीय प्ररोह रोग के लक्षण :
• पत्ती झुन्डो में निकलती हैं और अधिकतर पेड़ी फसल को नुक्सान करती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों में अचानक से फुटाव होकर झाड़ू के आकार में आ जाती है।
• रोगी पौधे से पतले पतले प्ररोह निकलने लगते हैं।
• रोगी पौधे की पत्तियां सफेद पीलेपन में होकर छोटी हो जाती है।
घासीय प्ररोह रोग के उपचार हेतु :
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको यह लेख से जानकारियां मिली हैं। हमारी त्रृटि अपने सुझाव तथा मार्गदर्शन आदि के लिए हमें लिखें updateagriculture@gmail.com





Thursday, 2 April 2020

गन्ना : पेड़ी प्रबन्धन

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ना फसल में उन्नत पेड़ी प्रबन्धन के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।
गन्ना पेड़ी प्रबन्धन
हमारे देश में गन्ना मुख्य फसल है। और अच्छा उत्पादन करने के लिए गन्ना पेड़ी का योगदान 50-60% के अंतर्गत आता है। गन्ने की खेती के लिए कुशल पेड़ी प्रबन्धन ही अति आवश्यक हो जाता है। 

गन्ना 

कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए महत्वपूर्ण सस्य गतिविधियां 
गन्ने की फसल में पेड़ी गन्ने में बचत की फसल होती है। जिसमे उत्तम पेड़ी प्रबन्धन करना अनिवार्य हो जाता है। बचत की करें तो बीज की बचत, भूमि की जुताई की लागत, पेलवा, बुवाई और फसल की सुरक्षा आदि में प्रति हेक्टेयर कम लागत है। जिसका पेड़ी फसल अधिक लाभ देती है।
खाद, उर्वरक , सिंचाई, निराई और कीट नियंत्रण आदि की समयबद्ध व्यवस्था के कारण गन्ना पेडी की पैदावार में अधिक वृद्धि होती है।पेड़ी गन्ने की फसल के लिए समय-समय पर कृषि गतिविधियाँ को अपनाने के लिए जोर दिया जाना चाहिए।

सतह से कटाई: - गन्ने की फसल के लिए आवश्यक होता है पौधे गन्ने की कटाई तेज धार वाले हथियार से गन्ने की जमीन की सतह से करनी चाहिए। । जिसके परिणामस्वरूप उपज में बढ़ोतरी के साथ स्वस्थ और निरोग प्रजाति विकसित होती है क्योंकि कोई भी गन्ना प्रजाति अपनी स्वस्थ पेड़ी और कुशल पेड़ी प्रबन्धन के साथ ही उत्तम प्रर्दशन करती हैं।

ठूंठ कटाई: - पेड़ी गन्ने की फसल के लिए और गन्ना पौधा वृद्धिऔर समान आकार के लिए कृषि गतिविधियाें में गन्ने की उपर बढ़ने वाली शाखाओं को  सतह से समान रूप से काटा जाता है, और ध्यान देने की बात है कि ठूंठ भूमि की सतह से उपर न रहे। परिणामस्वरूप  जमीन की सतह के उपरी आंख के फुटकर झुंड में सतह के नीचे वाली आखो में बहुत ही कम फुटाव होगा ऊपर तेज होगी। और बाद में भी उपरी आंखों में एक पौधा बाद में पोषक तत्वों और संरक्षण के लिए नहीं होना चाहिए।


जड़ों की कटाई - छंटाई और निराई
- पेड़ी गन्ने के खेतों की देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करना आवश्यक है, पुरानी जड़ों को तोड़ दें ताकि पुरानी जड़ों को तब तक बदल दिया जाए जब तक कि नई जड़ें बदल न जाएं। जिससे मृदा से पौधे की जड़ों को पोषक तत्व मिलते रहे। यदि पुरानी जड़ों को नहीं तोडते तो नई जड़ों की स्थापना में बहुत समय लगने के कारण पौधै की वृद्धि प्रभावित हो जाती है।

बड़े पोंगले की व्यवस्था : बड़े पोंगलो पर कीट व्याधियों के प्रकोप का खतरा बढ़ जाता है। खेत में निकले हुए बड़े पोंगलो को काट देना चाहिए और परिणामस्वरूप इससे फसल की पोषकता बनी रहे।

रिक्त स्थान की पूर्ति : कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए रिक्त स्थान की पूर्ति होना अनिवार्य हो जाता है। खेत में कहीं-कहीं पर गन्ना फुटाव नहीं पाया जाता है तो उनके स्थान पर गन्ने की उपरी हिस्से की आंख के टुकड़ों को 0.1% बॉवस्टीन के घोल से उपचारित करके खाली स्थानों को अवश्य भर देना चाहिए।  रिक्त स्थान की पूर्ति कुशलता से करने पर गन्ने की फसल की बराबरी से पैदावार और  सिंचाई और खाद उर्वरक का समुचित प्रबंधन में बहुत कारगर साबित होता है।

पेड़ी फसल सुरक्षा का संरक्षण: - पूर्व-कटाई में  कीटों का प्रकोप होता है जैसे कि भूमिगत कीट जैसे दीमक या सफेद ग्रब (गुबरेला)।  जो रोपण के समय निराई करते हुए इमिडाक्लोरप्रिड जैसे कीटनाशक रसायनों का उपयोग 1000 मिलीग्राम / हेक्टयर सूखा हुआ बालू का प्रयोग कर सिंचाई अवश्य करें। और दूसरी बार अगस्त या सितंबर में खड़ी फसल करना में भी करना नियंत्रित करने के लिए आवश्यक हो जाता है।  ये कीट गन्ना की प्रारंभिक वृद्धि को प्रभावित करते है जिसका जून से सितंबर तक और भूमिगत जड़ों को बुरी तरह से खाने से बचाव किया जा सकता है। जोकि अच्छे फसल उत्पादन के लिए इसका नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है।  अन्यथा, खड़ी फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।  उपरोक्त कीटों का प्रकोप सभी क्षेत्रों में भयानक बढ़ता जा रहा है।  इसलिए उपरोक्त कीटों को नियंत्रित और प्रबंधित करना बहुत महत्वपूर्ण है।

पत्ती काटने या कीट चूसने वाले कीटों पर नियंत्रण: -
गन्ने की फसल में मिलीभगत , चोटीबेधक ,काले चिकटे आदि कीटो का अधिक प्रकोप है, तो सूखी पत्ती को जलाकर नष्ट कर दें।  जिसके कारण कीट रोग के अंडे भी खेत में नष्ट हो जाएंगे।  सूखे पत्ते को जलाने के 24 घंटे के भीतर खेतों को पानी देना चाहिए। पेड़ी फसल के शुरुआत में कीटों आदि से बचाने के लिए पौधे की जड़ों में 15 दिनों के अंतराल पर दो बार किसी कीटनाशक रसायन का छिड़काव जैसे न्यूवन + प्रोफिनोफोस 40% + साईपरमैथॉन 4% (रॉकेट) या मोनोक्रोटोफ़ॉस आदि योग संयंत्र गन्ने की कटाई के 15 - 20 दिनों के अंतराल पर  करना चाहिए और तत्काल प्रकोप से बचाया जा सके।

खाद उवर्रक व पोषक तत्व : कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए बहुत ही आवश्यक होता है कि पेड़ी गन्ने में पोषक तत्वों की कमी नहीं आनी चाहिए। जब पौधे गन्ने को काटते हैं तो उससे उत्पन्न होने वाली पेड़ी गन्ने की नई जड़ों को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
अच्छी पेडी की फसल लेने के लिए संतुलित उर्वरकों की आवश्यकता होती है। और सामान्य पौधा फसल पेड़ी की तुलना से डेढ़ गुना अधिक प्रयोग होता है। निम्न तालिका के अनुसार, प्रति  प्रति बीघा मुख्य और सक्षम तत्व देने की सिफारिश की गई है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक का उपयोग अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत आवश्यक है।

पोषक तत्व सारणी

जिस खेत में गन्ने की पेड़ी ली जानी है, वहाँ खड़े पौधे गन्ने को 20-25 दिन पहले 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पोटाश के उपयोग कर सिंचित किया जाना चाहिए, ताकि खड़े गन्ने में स्वस्थ पोखरों का फुटाव वह संख्या अधिक हो।
गन्ने की कटाई के बाद पोगलो में कीट जैसे ब्लैक बग , मिली बग आदि कीट पोंगल पर पैदा हो जाते हैं। । जिनका रासायनिक कीटनाशक  के प्रयोग से नियंत्रण आवश्यक हो जाता है।

 खरपतवार नियंत्रण: -  कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। जोकि गन्ने की बढ़वार में उपस्थित रह कर पोषक तत्वों की मात्रा कम कर देते हैं और पेड़ी वृद्धि प्रभावित हो जाती है। जैसे मोथा , पत्थरचट्टा , कृष्णनील , सत्यानाशी , सॉठ , बथुआ , दूब घास आदि खरपतवार रोग व कीटों को शरण देते हैं।

खेत को खरपतवारों से मुक्त व सुरक्षा रखने के लिए फसल की  निराई-गुड़ाई लगातार करनी चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का संरक्षण , सिंचाई की नमी संरक्षण होता है। और आखिरी जुताई के समय पेड़ी गन्ने में मिट्टी अवश्य चढ़ाएं , जिससे फसल को काफी हद तक गिरने से रोका जा सकता है।  मेढ़ों के बीच में खाद डालने के बाद ही सूखी पत्तियों को बिछाकर खरपतवार को नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि पत्तियों को पहले से ही खेत में छोड़ देना बहुत गलत है, जिसके कारण उपरोक्त कृषि कार्य ठीक से नहीं हो पाते हैं।

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको पेड़ी प्रबन्धन के लिए बहुत ही अच्छा लेख लगा है। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com


और देखें गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार
           गन्ना: प्रमुख कीट व उपचार


Tuesday, 31 March 2020

पोलीहाउस : खेती और सब्सिडी

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम पोलीहाउस खेती के लाभ और सब्सिडी के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

पोलीहाउस
अगर आप खेती को पेशे के रूप में अपनाना चाहते हैं, तो पॉलीहाउस खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है।  पॉलीहाउस खेती आप कम या सीमित जमीन में सालाना लाखों रुपए कमा सकते हैं। और फसले खराब मौसम, बारिश या अन्य जानवरों से पूरी तरह से सुरक्षित रखने के साथ परम्परागत खेती में बदलाव कर अधिक गुणा लाभ कमा सकते है।  पॉलीहाउस में उगाए गयी सब्जी या फल उत्पाद में गुणवत्ता बहुत अच्छी होने के कारण बाजार में बेहतर कीमत मिलती है।

पोलीहाउस खेती

क्या है पॉलीहाउस
 पॉलीघर या पॉलीहाउस पॉलीथीन से बना एक सुरक्षात्मक शेड हाउस है जिसका उपयोग उच्च मूल्य के कृषि उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है।  यह अर्धवृत्ताकार, वर्गाकार या लम्बा हो सकता है।  इसमें स्थापित उपकरणों की सहायता से गर्मी, आर्द्रता, प्रकाश आदि को नियंत्रित किया जाता है।

स्वचालित प्रणालियों की मदद से तापमान और उच्च लाभ के कारण लोग पॉलीहाउस खेती की ओर रुझान कर रहे हैं। खुले खेतों में पारंपरिक खेती में हमेशा अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों और कीटों और बीमारियां आने का जोखिम होता है। 
अधिकांश लोग पोलीहाउस निर्माण के लिए होने वाले खर्च देखकर पोलीहाउस निर्माण नहीं कराते। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि केन्द्र सरकार और बागवानी विभाग पोलीहाउस निर्माण के लिए 50-60% तक की सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं। और बैंक भी लोन देकर बढ़ावा दे रहे हैं। 

पोलीहाउस खेती के लाभ :
• पोलीहाउस फसल को किसी भी मौसम में सही वातावरण सुविधा उपलब्ध कराने में मदद करता है। 
 • फसलों व फूलो को मौसम के आधार विशेष मौसम का इंतजार ना कर वर्ष भर उगाई जा सकती हैं।  
• पॉलीहाउस खेती में कीट और बीमारियां लगने के आसार कम ही होते हैं। जिसमे फसल के नुकसान या क्षति की संभावना कम हो जाती है।
• जैविक खेती करने वाले कृषकों के लिए खासतौर पर पॉलीहाउस बहुत फायदेमंद होता है। 
• पौधों की वृद्धि पर बाहरी जलवायु का प्रभाव नहीं पड़ता है। 
• पॉलीहाउस में उत्पादन की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से अधिक है। 
 • पारम्परिक खेती की तुलना में उपज की गुणवत्ता अधिक है।
 • पॉलीहाउस में हमेशा बेहतर जल निकासी और बेहतर पौधों के विकास के लिए वातन प्रणाली होती है। 
 • ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिंचाई की मदद से उर्वरक प्रयोग आसान हो जाता है।  
 • पॉलीहाउस की खेती, फसल की देखभाल, उत्पादों की ग्रेडिंग प्रणाली कार्य आसान हो जाता है। 

पोलीहाउस खेती के प्रकार 

पोलीहाउस पर्यावरण के आधार पर दो प्रकार के होते हैं। 
1. प्राकृतिक रूप से हवादार पोलीहाउस 
2. पर्यावरण नियंत्रण पोलीहाउस 

1. प्राकृतिक रूप से हवादार पोलीहाउस  : इन पोलीहाउस में कोई विशेष पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली नहीं होती। प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस का उद्देश्य पौधों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से बचाने के लिए है।

2. पर्यावरण नियंत्रण पोलीहाउस  : इस प्रकार के पोलीहाउस वर्ष भर फसलों की उगाने के लिए तापमान , आद्रता जैसे पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली उपलब्ध कराते हैं। 

पोलीहाउस की 3 श्रेणी होती है। 
1. लॉ टेक(कम लागत) पोलीहाउस सिस्टम
2. मिडियम/ मध्यम टेक पोलीहाउस सिस्टम
3. हाई टेक पोलीहाउस सिस्टम 

पोलीहाउस लागत और सब्सिडी 
 पॉलीहाउस निर्माण की लागत मूल आकार और आकार, संरचना (जीआई / स्टील या लकड़ी) और पॉलीहाउस के प्रकार (पर्यावरण नियंत्रित या स्वाभाविक रूप से हवादार) पर निर्भर करती है।

पॉलीहाउस की लागत आपके द्वारा चुने गए सिस्टम और निर्माण क्षेत्र पर निर्भर करती है। जिसकी अनुमानित लागत क्षेत्रानुसार बदल सकती है। 
•  कम लागत / कम तकनीक वाले पॉलीहाउस के लिए फैनलेस सिस्टम और कूलिंग पैड सिस्टम के बिना।  400 से 500 रुपए /वर्ग मीटर
 (शीतलन पैड और निकास पंखा प्रणाली स्वचालन के बिना ) 
• मध्यम लागत / मध्यम तकनीक पॉलीहाउस 900-1200 रुपए/ वर्ग मीटर ( शीतलन पैड और निकास पंखा प्रणाली के साथ )
 • हाईटेक पॉलीहाउस पूरी तरह से स्वचालित नियंत्रण प्रणाली के साथ र 800 से 4000 रुपए / वर्ग मीटर।

पोलीहाउस सब्सिडी : हमारी भारत सरकार पोलीहाउस खेती के लिए बढ़ावा दे रही है। और बागवानी विभाग के माध्यम से पोलीहाउस निर्माण की लागत का 50-60% तक सब्सिडी उपलब्ध करा रही है। अधिक जानकारी के लिए नेशनल हार्टीकल्चर बोर्ड के अधिकारियों के साथ कनेक्ट कर सकते हैं। 

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड सब्सिडी मानक



स्रोत www.nhb.gov.in
अधिक जानकारी के लिए Nhb और
NHM पर क्लिक करें  और www.nhb.gov.in
देखें। 
साथ जिला उद्यान अधिकारी या निकटतम सरकारी कृषि विभाग से संपर्क कर की दिशा निर्देश दिए करते हैं। 


बैंक द्वारा जारी बागवानी लोन :
कृषक हित के लिए खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के बैंक द्वारा जारी बागवानी लोन , पोलीहाउस निर्माण के अवसरों को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
सैन्टॄल बैंक आफ इंडिया के जारी लोन सूची पोलीहाउस निर्माण के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसके अंतर्गत आने वाली लागत का 80% और अधिकतम ऋण सीमा 20 लाख रुपए तक की है। 
जोकि सेन्ट पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, शेड नेट हाउस योजना के अंतर्गत लोन दिया जा रहा है। जिसका उद्देश्य विभिन्न उच्च गुणवत्ता वाले वाणिज्यिक बागवानी फसलों जैसे फूलों, सब्जियों, फलों, औषधीय पौधों, मसालों आदि की संरक्षित खेती के लिए आवश्यकता-आधारित वित्तपोषण प्रदान करना  तथा ग्रीन हाउस, पॉली हाउस, शेड नेट आदि का निर्माण / स्थापना;  आवश्यक उपकरण और कार्यशील पूंजी की खरीद और स्थापना करना है। 
इस लोन योजना की पात्रता , ऋण सीमा , मार्जिन , ब्याज दर , जरूरी दस्तावेज आदि की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें और या अपने निकटतम शाखा अधिकारियों से बातचीत कर सहायता ले सकते हैं। 


धन्यवाद। आशा करते हैं आपको पोलीहाउस खेती निर्माण के लाभ और सब्सिडी के बारे मे जानकारी प्राप्त हुई हैं ।अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें एग्री-बिजनेस : टॉप टेन कृषि व्यवसाय


Monday, 30 March 2020

जैविक खेती : जैविक खेती करने के लाभ

जैविक खेती करने के लाभ 
नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम जैविक खेती से भूमि और वातावरण पर होने वाले प्रभाव पर जानकारी साझा कर रहे हैं। जैविक खेती करने से कृषक अपनी फसल की गुणवत्त उत्पादन के साथ अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने की कोशिश कर रहे हैं। जोकि कारगर साबित हो रही है। साथ ही मृदा संरक्षण में बहुत लाभदायक होता है। जैविक खेती करने से होने वाले प्रभावशाली लाभ को निम्र प्रकार से है।


जैविक खेती के लाभ
 1. जैविक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी का जैविक स्तर बढ़ जाता है, लाभकारी बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है और मिट्टी बहुत उपजाऊ हो जाती है।
  2. जैव-उर्वरक पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज प्रदान करते हैं, जो पौधों में मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों के माध्यम से पौधों को स्वस्थ रखते हैं और उत्पादन बढ़ाते हैं।

3. रासायनिक उर्वरकों की तुलना में जैविक उर्वरक सस्ता, टिकाऊ और आसान है।  मिट्टी की उपजाऊ स्थिति में सुधार करता है। 
 4. पौधों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पर्याप्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, और जैविक उर्वरकों का उपयोग करके पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की भरपाई की जा सकती है।
  5. कीटों, रोगों और घासों पर नियंत्रण काफी हद तक फसल चक्र, कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं, प्रतिरोध किस्मों और जैविक उत्पादों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।


6. जैविक उर्वरक सड़ने पर कार्बनिक अम्ल देते हैं, जो मिट्टी के अघुलनशील तत्व को घुलनशील तत्व में परिवर्तित करते हैं, जिससे मिट्टी का पीएच मान 7 तक कम हो जाता है। इसलिए, इसके साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।  यह तत्व फसल उत्पादन में आवश्यक है।

7. इन उर्वरकों के उपयोग से पौधों को पर्याप्त समय के लिए पोषक तत्व मिलते हैं। यह खाद मिट्टी में अपने अवशिष्ट गुणों को छोड़ देती है।  इसलिए, एक फसल में इन उर्वरकों के उपयोग से दूसरी फसल को लाभ होता है।  यह मिट्टी की उर्वरता के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

8. रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती नमी को अधिक समय तक बनाए रखने से सिंचाई लागत में कमी आती है। 
9. अत्यधिक रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति पर बुरा असर पड़ता है। 
10. जैविक खेती से भूमि की गुणवत्ता में सुधार के साथ वातावरण प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। 

धन्यवाद। अपने सुझाव हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें कम्पोस्ट खाद : घर पर बनाएं।

Sunday, 29 March 2020

भारतीय मृदा और प्रकार

  भारतीय मृदा और प्रकार
 नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम भारतीय मृदा और प्रकार के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

भारतीय मृदा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में विभाजित किया है: जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी, लेटराइट, सूखी मिट्टी, लवणीय मिट्टी, पीट ( जैविक मिट्टी)। 

 जलोढ़ मिट्टी ( दोमट मिट्टी ) 
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर जलोढ़ मिट्टी या दोमट मिट्टी के क्षेत्र में पाई जाती है।  भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40 प्रतिशत भाग पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।  जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों के जमाव से होता है। रेतीली और बलुई मिट्टी के मिलने से जलोढ मिट्टी बनाई जाती है  जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्का भूरा होता है। जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कम मात्रा होती है।  यही कारण है कि जलोढ़ मिट्टी में यूरिया का निषेचन फसल उत्पादन के लिए आवश्यक है।
  जलोढ़ मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में पोटाश और चूना होता है।  भारत में, उत्तर का मैदान (गंगा का मैदान), सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान, गोदावरी का मैदान, कावेरी का मैदान जलोढ़ मिट्टी से बना है।  गेहूँ की फसल के लिए जलोढ़ मिट्टी अच्छी मानी जाती है।  इसके अलावा धान और आलू की भी इसमें खेती की जाती है।  जलोढ़ मिट्टी रेतीली और रेतीली मिट्टी को मिलाकर बनाई गई है।  जलोढ़ मिट्टी में ही बांगर और खादर मिट्टी होती है।  बांगर को पुरानी जलोढ़ मिट्टी और खादर नई जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है।

काली मिट्टी 
 मिट्टी के क्षेत्र में भारत की काली मिट्टी का स्थान दूसरा है।  महाराष्ट्र में भारत में सबसे अधिक काली मिट्टी है और गुजरात प्रांत में दूसरी है।  ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बेसाल्ट चट्टान का निर्माण काली मिट्टी का निर्माण हुआ।  बेसाल्ट के टूटने से काली मिट्टी पैदा होती है।  दक्षिण भारत में काली मिट्टी को रेगुर कहा जाता है।काली मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कम मात्रा भी होती है।  इसमें उच्च मात्रा में लोहा, चूना, मैग्नीशियम और एल्यूमिना होता है. 
काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी पर्याप्त होती है।  कपास के उत्पादन के लिए काली मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है।  इसके अलावा काली मिट्टी में चावल की खेती भी अच्छी होती है।  काली मिट्टी में दाल और चने की भी अच्छी पैदावार होती है।  लोहे की उच्च सामग्री के कारण काली मिट्टी काली है।  काली मिट्टी में पानी जल्दी नहीं सूखता है, जिसका अर्थ है कि इसमें भिगोया गया पानी लंबे समय तक रहता है, जिसके कारण इस मिट्टी में धान की पैदावार अधिक होती है।  काली मिट्टी सूखने पर बहुत कठोर हो जाती है और गीली होने पर तुरंत चिपचिपी हो जाती है।  भारत में लगभग   5.46 मिलियन वर्ग किलोमीटर काली मिट्टी का विस्तार है।

लाल मिट्टी 
क्षेत्रफल की दृष्टि से लाल मिट्टी भारत में लाल मिट्टी का तीसरा स्थान है।  लाल मिट्टी भारत में 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।  लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से हुआ है।  ग्रेनाइट चट्टान आग्नेय चट्टान का एक उदाहरण है।  तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी है।  ज्यादातर खनिज लाल मिट्टी के नीचे पाए जाते हैं।  लाल मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा भी कम होती है।  लाल मिट्टी में मौजूद आयरन ऑक्साइड (Fe203) के कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है।  लाल मिट्टी को फसल उत्पादन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।  इसमें ज्वार, बाजरा, मूंगफली, कबूतर, मक्का आदि जैसे मोटे अनाज शामिल हैं। इस मिट्टी में कुछ हद तक धान की खेती की जाती है, लेकिन धान का उत्पादन काली मिट्टी से कम नहीं है।  तमिलनाडु के बाद, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में भी लाल मिट्टी पाई जाती है। 

लेटराइट मिट्टी 
लेटराइट मिट्टी भारत में क्षेत्रफल के मामले में चौथे स्थान पर है।  भारत में यह मिट्टी 1.26 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।  लेटराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड और एल्यूमीनियम ऑक्साइड की उच्च मात्रा होती है, लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश कार्बनिक तत्वों की कमी होती है। यह मिट्टी पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है।  इसमें उच्च मात्रा में आयरन ऑक्साइड और एल्यूमीनियम ऑक्साइड होता है, लेकिन इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटा और चूने की कमी होती है।  इस मिट्टी का रंग भी लाल होता है।  जब बारिश होती है, तो चूना पत्थर इस मिट्टी से अलग हो जाता है, जिसके कारण यह मिट्टी सूखने पर लोहे की तरह सख्त हो जाती है।

पहाड़ीय मिट्टी 
इनमें कंकड़ और पत्थर अधिक होते हैं।  पोटाश, फॉस्फोरस और चूने की भी पर्वतीय मिट्टी में कमी है।  बागवानी क्षेत्र में बागवानी विशेष रूप से की जाती है।  झूम खेती केवल पहाड़ी क्षेत्र में की जाती है।  झूम खेती नागालैंड में सबसे ज्यादा प्रचलित है।  पर्वतीय क्षेत्र में गरम मसाला सबसे अधिक खेती वाला क्षेत्र है।  
सूखी और रेगिस्तानी मिट्टी: यह सबसे कम उपजाऊ होती है। सूखी और रेगिस्तानी मिट्टी में घुलनशील लवण और फॉस्फोरस अधिक होते हैं।  इस मिट्टी में कम नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ होते हैं।  इस मिट्टी को तिलहन के उत्पादन के लिए अधिक माना जाता है।  पानी की व्यवस्था के बाद रेगिस्तानी मिट्टी में एक अच्छी फसल भी पैदा होती है।  इस मिट्टी में तिलहन के अलावा ज्वार, बाजरा की खेती की जाती है।  

लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी
लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी, उसर मिट्टी और कल्लर मिट्टी के नाम से जाना जाता है।  क्षारीय मिट्टी उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पानी की निकासी की सुविधा नहीं है।  ऐसे क्षेत्र की मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण मिट्टी क्षारीय हो जाती है।  क्षारीय मिट्टी तटीय मैदान में बनती है।  इसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है।  भारत में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान और केरल के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

पीट मिट्टी 
 पीट मिट्टी को जैविक मिट्टी व दलदली मिट्टी के रूप में जाना जाता है।  भारत में दलदली मिट्टी का क्षेत्र केरल, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पाया जाता है।  दलदली मिट्टी में फास्फोरस और पोटाश की मात्रा कम होती है, लेकिन लवण की मात्रा अधिक होने के कारण मिट्टी को भी फसल उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता है।

धन्यवाद 

Friday, 27 March 2020

कम्पोस्ट खाद : घर पर बनाएं।

 नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।   
पौधों के लिए खाद पोषक तत्वों में समृद्ध है और बाजार में उपलब्ध नहीं है।  अगर आपके पास खुली जगह है तो घर पर ही आप पोषक तत्वों से भरपूर खाद तैयार कर सकते हैं।  पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी पौधों के लिए आवश्यक है।  यहां की मिट्टी में पोटाश और फॉस्फेट अच्छी मात्रा में मिलाया जाता है, लेकिन पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक तत्व कम नाइट्रोजन और नाइट्रोजन खाद के रूप में संतुलित रूप में उपलब्ध है।
  मनुष्य ही नहीं, पशु और पक्षी सभी को वनस्पति जगत से अपना मुख्य भोजन मिलता है, और यह कि मल और मूत्र मिट्टी में मिल जाते हैं और भूमि को उपजाऊ बनाते हैं।  यदि इसे ठीक से तैयार किया जाता है, तो हम खाद तैयार करके पौधों को बहुत संतुलित पोषण सामग्री प्रदान कर सकते हैं।   प्रकृति में, यह सड़ने और पिघलने बैक्टीरिया की मदद से होता है।  यह भी देखा गया है कि यह जीवाणु केवल (लगभग 3 फीट) की गहराई तक आसानी से चला जाता है।  तदनुसार, हम खाद के लिए गड्ढे तैयार करते हैं।  यह गड्ढा तीन फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा होना चाहिए।

कम्पोट घर बैठे बनाए 

गड्ढे का सही आकार 5*3 फीट या सुविधा के अनुसार  होना चाहिए। गड्ढे में, पहले उसके चारों ओर पानी छिड़कें और इसे नम करें, और इसमें 30 मिनट के लिए घर के पत्ते, पौधे, रसोई और अन्य बदबूदार अपशिष्ट छोड़ दें।  30. CM ऊंचाई तक भरें।  उस पर गोबर फैलाएं।  यदि कोई गोबर नहीं है, तो यूरिया की परत फैलाएं।  इसके बाद, फिर से पानी का छिड़काव करके, आप कचरा, कचरा, पत्ते आदि भरते हैं। गोबर खाद में बैक्टीरिया पैदा करता है, जो सड़ने की प्रक्रिया को तेज करता है।  इसके बाद, पूरे गड्ढे को पैर से धक्का दें और उस पर पर्याप्त पानी डालें।  यह नमी अपशिष्ट को सड़ने और सड़ने में तेजी लाती है।

इस तरह से गड्ढे को पूरी तरह से भर दें और इसे मिट्टी के साथ बंद कर दें और समय-समय पर पानी डालते रहें।  इस प्रक्रिया में, आपको तीन से चार महीनों में पोषक तत्वों से भरपूर खाद मिल जाएगी और घरेलू कचरे - कचरे का भी सही उपयोग हो जाएगा।  यह काले रंग के पाउडर की तरह दिखेगा।  इसकी कोई महक नहीं होगी।


कम्पोस्ट खाद कैसे तैयार करें

 तैयार खाद के लिए एक गड्ढा खोदें, जो तीन फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा होना चाहिए।  गड्ढे में, पहले इसके चारों ओर पानी छिड़कें और इसे मॉइस्चराइज करें, और घर के पत्ते, पौधे, रसोई और अन्य बदबूदार कचरे को 30 मिनट के लिए इसमें जोड़ें।  3 फीट ऊँचाई तक भरें।  उस पर गोबर फैलाएं।  उसके बाद फिर से पानी छिड़क कर कचरा - कचरा, पत्ते आदि भरें।  इसके बाद, पूरे गड्ढे को पैर से धक्का दें और उस पर पर्याप्त पानी डालें।  इस तरह से गड्ढे को पूरी तरह से भर दें और इसे मिट्टी के साथ बंद कर दें और समय-समय पर पानी डालते रहें।  यह प्रक्रिया तीन से चार महीनों में आपके लिए है।  तत्वों से भरपूर खाद तैयार की जाएगी और घरेलू कचरे का सही इस्तेमाल किया जाएगा।

 नीचे दिए गए सभी चरणों का पालन करें जो आपको महान खाद बनाने में मदद करते हैं। 

  1: अपने खाद कंटेनर को सीधे मिट्टी पर रखें - कीड़े और अन्य रोगाणु खाद की प्रक्रिया को गति देंगे।  पता लगाएं कि आपके लिए कौन सा उर्वरक का कंटेनर सबसे अच्छा है।  बेस पर चिकन तार कृन्तकों को बाहर रखेगा।  ध्यान रखें कि मिश्रण हरे और भूरे रंग के पदार्थ के बराबर होना चाहिए।  

2: गार्डन कांटा के साथ, आप कभी-कभी स्टैक को मिलाकर इस प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं, ताकि यह बाहर के तत्वों को अंदर से मिला सके।  इसे बारिश से बचाने के लिए अपने बिन को कवर करें।

  3: जब मिश्रण भूरा हो जाता है और कुरकुरा और थोड़ा सुगंधित होता है, तो प्रक्रिया पूरी हो जाती है।  यदि ढेर नियमित रूप से मिश्रण करना जारी रखता है, तो छह महीने लगेंगे।  अन्यथा, इसमें अधिक समय लग सकता है।

धन्यवाद। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com  

और देखें जैविक खेती : जैविक खेती करने के लाभ

Thursday, 26 March 2020

एग्री-बिजनेस : टॉप टेन कृषि व्यवसाय

  नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम कृषि उत्पादन से जुड़े सरल और सर्वोत्तम लघु कृषि व्यवसाय के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।

टॉप टेन कृषि व्यवसाय

कृषि व्यवसाय में अवसर


1. डेयरी उद्योग : डेयरी व्यवसाय किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह दूध उत्पादन के स्तर को बढ़ावा देने के साथ रोजगार साधनों को बढ़ावा देने के लिए लाभकारी है। डेयरी उद्योग से किसान मानव उपभोग के लिए दूध, दही, पनीर और अन्य डेयरी उत्पादों के निर्माण के लिए दूध से ही निकालते हैं।

2. मुर्गी पालन : पोल्ट्री फार्मिंग किसान उन्नति के लिए लाभकारी व्यवसाय है। पोल्ट्री फार्मिंग व्यवसाय किसान के रोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए लाभकारी है। इन उत्पादों से अंडे , मांस आदि के उत्पन्न करने के लिए स्थापित किए जाते हैं। जोकि भोजन का अच्छा स्रोत माने जाते हैं। 

3. मशरूम फार्मिंग :  मशरूम फार्मिंग किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह बहुत कम समय में अच्छी आय देने के लिए स्थापित किए जाते हैं। और अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 

4. मधुमक्खी पालन : मधुमक्खी पालन किसान के लिए लाभकारी व्यवसाय है। यह मुख्य रूप से शहद और मोम जैसे अन्य उत्पादों को बेचने के लिए किया जाता है।  जोकि छोटे से निवेश करने से आय और रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए जाते हैं।

5. मत्स्य पालन : मत्स्य उद्योग उन्नत व्यवसाय जो किसी भी समय आय और रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए जाते हैं। जोकि मछली उत्पादन के साथ मीट उत्पादन के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। 

6. आर्गेनिक फार्म हाउस :  आर्गेनिक फार्म हाउस में रोजगार के अवसरों को स्थापित किया जा रहा है। इसमें उगाये गये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर मांग में बहुत बढ़ोतरी हुई है। जोकि भोजन के लिए लाभकारी होने के साथ आय में वृद्धि को दर्ज किया गया है। जैविक फार्म हाउस व्यवसाय आम तौर पर छोटे, परिवार चलाने वाले खेतों पर किया जाता था। लेकिन जब से जैविक रूप से विकसित खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ी है, लोग जैविक खेती के लिए भूमि में निवेश कर रहे हैं।



7. कृषि उर्वरक वितरण : कृषि उर्वरक वितरण व्यवसाय छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कृषि श्रमिकों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय है।  यह मध्यम पूंजी निवेश से शुरू हो सकता है।  यह लाभदायक एग्रीबिजनेस विचारों में से एक है।

8. वर्मीकम्पोस्ट जैविक उर्वरकों का उत्पादन : जैविक खाद उवर्रकों का उत्पादन कृषक हित में काम करता है। छोटे से निवेश करने से अधिक वर्मीकम्पोस्ट जैविक खाद उत्पादन करने से समर्थ हो जाते हैं। जोकि अपने नीजी क्षेत्र से भी जैविक उवर्रको को स्थापित कर रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप कृषक हित में रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। 

9. पशुधन चारा उत्पादन : पशुधन चारा उत्पादन कृषि से जुड़े श्रमिकों के रोजगार के अवसरों का लाभ उठा रहे हैं। पशुपालन के लिए दाना और चारे की गुणवत्ता मांग में बढ़ोतरी हुई है। जिसके कारण निम्न निवेश करने से अधिक आय प्राप्त हो रही है। 

10. फल और सब्जियों की खेती : सब्जियों-फलों की खेती एक निश्चित अवधि और निश्चित क्षेत्र में अधिक आय के स्रोतों को बढ़ावा दे रही है। जिसकी मांग बढ़ने के परिणामस्वरूप कृषक प्रशिक्षण के साथ-साथ रोजगार की संभावनाएं बनती है। जोकि मध्यम निवेश करने के साथ अच्छा उत्पादन करने के लिए लाभकारी व्यवसाय है। 

धन्यवाद। अपने सुझाव हमें लिखें updateagriculture@gmail.com

और देखें पोलीहाउस : खेती और सब्सिडी

Wednesday, 25 March 2020

कारोनावायरस : कृषि उत्पादन चुनौतिया

नमस्कार । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हम वर्तमान में एक महामारी का सामना कर रहे हैं     कोविड-19
भारत, दुनिया से ज्यादा इस खतरे से बचाना है तो बहुत सावधान रहने की जरूरत है। कोरोनावायरस भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए एक और खतरा है।
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस छूत बिमारी पर अंकुश लगाने के सराहनीय प्रयासों किये जा रहे हैं ओर लोगो को एक शहर से दूसरे शहर एक गांव से दूसरे गांव और एक स्थान से दूसरे स्थानो पर बड़े पैमाने पर आवाजाही न करने की जानकारी दी जा रही है । यह कोई पता नहीं लगा सकते कि इस बडी संख्या में  कितने लोग वायरस से पीड़ित हैं। और यह रोग हमारे खाद्य आपूर्ति और बीजों को भी प्रभावित करेगा।

कोविड 19 : रबी खरीफ फसलों पर प्रभाव
कृषि हमारी वास्तविकता का आधार है और हमारी कृषि गुणवत्ता बीज और संगठित बीज क्षेत्र पर निर्भर करती है।  हमारा खाद्य उत्पादन भी मानव संसाधन और कृषि श्रम की उपलब्धता और कृषि उत्पादों की आवाजाही पर निर्भर है जो कोविद -19 के कारण सभी प्रतिबंधित हैं।
अब देश भर में रबी की गेहूं और अन्य फसलों की कटाई  प्रक्रिया, भंडारण क्षमता को प्रभावित करेगा। जिसके कारण खाद्य उत्पादन और उच्च खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति कमजोर होना संभव है। जो इस वर्ष के अंत में खाद्य उत्पादन को कम कर देंगे ।
देश के उत्तरी हिस्सों में किसान पहले से ही बेमौसम बारिश का सामना कर रहे थे, और अब वे कोरोनोवायरस की चपेट में हैं। लोगों को डर है कि इससे उनकी  रबी की फसल प्रभावित हो सकती है।  मौजूदा माहौल में पहले से ही खेती की लागत बढ़ गई।

बीज संसाधनों पर प्रभाव
बीज क्षेत्र के लिए, इस मौसम के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और बीज मूल्य निर्धारण की गणना इस माहौल में बहुत कम हो सकती है और बीज खुदरा विक्रेताओं के साथ-साथ छोटी और मध्यम बीज कंपनियों को भी जायद और खरीफ सीजन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत किसानों को खरीफ सीजन के लिए 250 लाख क्विंटल गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति करने के लिए तैयार नेशनल सीड सर्टिफिकेशन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् व अन्य संस्थाओं को राहत देने वाली पहल करनी होगी क्योंकि प्रयोगशालाएं बंद हैं, और निजी बीज क्षेत्र भी कोविड-19 की चपेट से बंद है।
  भारत की खाद्य आपूर्ति और किसानों की आय का लगभग 60 प्रतिशत खरीफ मौसम पर निर्भर है और खरीफ बीज तैयार करने के लिए मार्च से मई एक महत्वपूर्ण समय है। किसानों को बीज का उत्पादन और वितरण कौन करायेगा और अच्छे बीज पैदा किए बिना भारत अपने रबी और खरीफ लक्ष्यों को कैसे पूरा कर सकता है।



बीज आपूर्ति प्रभावित
बीज किसानों के खेतों में भेजे जाने की तैयारी होने से पहले बीज की आवश्यकता होती है। किसानों के खेतों में बीज उत्पादन के अलावा, पूर्व फसल कटाई के संचालन की देखरेख, गुणवत्ता नियंत्रण के लिए उत्पादन पर्यवेक्षी टीमों की आवश्यकता होती है। इसी तरह गुणवत्ता आश्वासन टीमों को निरीक्षण करने की आवश्यकता होती है। परीक्षण संचालन के साथ-साथ प्रयोगशाला परीक्षणों की भी किये जाते हैं।
बीजों को पूरे देश में संसाधित करने, पैक करने और वितरित करने की आवश्यकता है ताकि वे लाखों खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से जरूरतमंद किसानों तक पहुंच सकें जो राष्ट्र की खाद्य आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अपनी फसल की बुवाई समय से कर सकें।
बीजों की आवाजाही को एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी रुकावट के भेजा जा सके। पश्चिम बंगाल में जूट की बुआई शुरू हो चुकी है।  पंजाब, हरियाणा आदि में बहुत जल्द कपास की बुवाई शुरू हो सकती है।

सुरक्षा के साथ उत्पादन
डर कोरोना की तुलना में तेजी से बढ़ता है।  हमें सुनिश्चित निर्णय लेने की आवश्यकता है, इसलिए COVID-19 हमारे कृषि और खाद्य आपूर्ति को खतरे में डालने के लिए विकसित नहीं हुआ है।  किसी भी सरकार को बीज सहित कृषि उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए।  बीज कंपनियों और निर्यातकों और शामिल श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
हम सभी को इस वायरस से लड़ने के लिए एक राष्ट्र के रूप में एक साथ आना होगा।  किसानों और बीज प्रजनकों सहित चिकित्सा कर्मचारियों, सरकार और आवश्यक श्रमिकों की भारत में वायरस प्रूफिंग में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी खाद्य आपूर्ति घटिया न हो और भारत बाकी दुनिया की तरह दहशत में न आए।

धन्यवाद। अपने सुझाव के लिए updateagricture@gmail.com

Tuesday, 24 March 2020

भारत में कृषि क्रांतिया

 नमस्कार। मेरे ब्लोग पर आप सभी का स्वागत है। आज हम भारतीय कृषि क्षेत्र में लाती गरी क्रान्तिया के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।
 भारत के कृषि क्षेत्र को बढवा देने के लिए कृषि क्षेत्र में कई प्रकार की क्रांति लाई गई जिनकी सहायता से भारत में कृषि के क्षेत्र में काफी स्तर तक सुधार आया और भारत का विश्व में एक अलग स्थान बना तो आइये जानते हैं भारत में कृषि के क्षेत्र हुई क्रांतियाँ।
माना जाता है कि भारत में पहली क्रांति 1966 -67 की हरित क्रांति के साथ शुरू हुई थी।  इस क्रांति के कारण, बीजों की उन्नत गुणवत्ता को प्राथमिकता दी गई, जिसके परिणामस्वरूप भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया।  इस क्रांति के बाद, भारत में दूध क्रांति, पीली क्रांति, गोल क्रांति, नीली क्रांति आदि शुरू हुई और भारत दूध, सरसों, आलू और मछली उत्पादन में आत्म निर्भर हो गया।



कृषि क्रांतियाँ

 1. हरित क्रांति
2. नीली क्रांति
3. स्वेत / सफेद क्रांति
4. रजत/ सिल्वर क्रांति
5. सुनहरी/ गोल्डन क्रांति
6. ग्रे / ब्राउन क्रांति
7. पीली क्रांति
8. लाल क्रांति
9. गोल क्रांति
10. काली क्रांति
11. इन्द्रधनुष क्रान्ति

1. हरित क्रांति : 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत मानी जाती है।  हरित क्रांति के जनक डॉ नार्मन बोरलॉग ओर भारत में डॉ एम.एस. स्वामीनाथन  को श्रेय दिया जाता है। गेहूं और धान वर्षो से हरित क्रांति का मुख्य आधार रहा है, जिसके परिणामस्वरूप उपज में सुधार हुआ और अतिरिक्त उपज देने वाली फसलें की किस्मों में वृद्धि हुई और प्रति वर्ष अतिरिक्त टन अनाज का उत्पादन किया जाता है। और कृषि श्रमिकों के रोजगार के अवसर प्राप्त हुआ और आय में वृद्धि कराई गई। 1970 में डॉ नार्मन बोरलॉग को विश्व के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2. नीली क्रांति : 1985 में मत्स्य उद्योग विभाग उत्पादन में वृद्धि के लिए नीली क्रांति की शुरुआत का श्रेय डॉ अरुण कृष्णा और हरलाल चौधरी को दिया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप भारत के मछली उत्पादन में वृद्धि हुई। ओर  2013-14 में लगभग 96 लाख टन मछली उत्पादन रहा।

3. स्वेत/ सफेद क्रांति : 1970 के दशक के दौरान स्वेत क्रांति की शुरुआत का श्रेय डॉ डी वर्जीग कुरियन को दिया जाता है। जिसे आपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता है। स्वेत क्रांति का सीधा संबंध भारत में दूध उत्पादन में वृद्धि से रहा। देश में स्वेत क्रांति को बढ़ावा देने के लिए  राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा एक नया कार्यक्रम "ऑपरेशन फ्लड" शुरू किया गया। पशुपालन में सुधार के लिए अलग से एक पैकेज पेश किया गया था। सहकारी समितियां गठित की गई निजी दुध डेयरी का साझा किया गया।  जिसके परिणामस्वरूप भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुध उत्पादन करने वाला देश है। जो भारतीय किसान के रोजगार और संसधानो में वृद्धि हुई।



4. रजत/ सिल्वर क्रांति : कृषि की यह रजत क्रांति अंडा व मुर्गियों के उत्पादन से संबंधित है।

5. सुनहरी/ गोल्डन क्रांति : गोल्डन क्रांति का संबंध बागवानी , शहद , फलो के उत्पादन में वृद्धि से है। भारत फल सब्जी उत्पादन में दुनिया भर में दुसरे स्थान पर है।

6. ग्रे / ब्राउन क्रांति : ग्रे क्रांति का संबंध खाद उवर्रकों की उत्पादन क्षमता में सुधार करना और अतिरिक्त उत्पादन बढ़ाने से है। जोकि हरित क्रांति से जुड़ा हुआ है। जिसका श्रेय देवेन्द्र शर्मा को दिया गया है।

7. पीली क्रांति : 1986-1987 में डॉ सैम पित्रोदा को पीली क्रांति के जनक माने जाते हैं। जिसके अंतर्गत तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया। जिसमें मुंगफली, सरसों ,  तिल, अंरडी , सोयाबीन, अलसी सूरजमुखी की फसलें ली गई।  2003-04 में इन फसलों के द्वारा देश में तिलहन उत्पादन कुल 250 लाख टन था जो 2013-14 में 330 लाख टन उत्पादन लिया गया जो कि अपने आप में सर्वाधिक उत्पादन रहा। इन फसल के प्रयास से ही भारत तिलहन उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।  भारत तिलहन उत्पादन में दुनिया भर में रिकॉर्ड छटे स्थान बनाया रखा है।

8. लाल क्रांति : लाल क्रांति का संबंध भारत में टमाटर की उत्पादन क्षमता के साथ मांस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए है। भारत में जिनका श्रेय विशाल तिवारी को जाता है।

9. गोल क्रांति : गोल क्रांति का संबंध आलू उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने से है। गोल क्रांति का लक्ष्य आलू के उत्पादन में वृद्धि करना है।  साथ ही, कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को इसकी गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

10. काली क्रांति : इसका संबंध कोयला उत्पादन और पेट्रोलियम  खनिज तेल के उत्पादन बढ़ाने व उत्पाद संसाधन विकास से है।

11. इन्द्रधनुष क्रान्ति  : सन जुलाई 2000 में भारत सरकार ने नई कृषि नीति को लागू किया गया। जिसके अंतर्गत हरित क्रांति , नीली , लाल , स्वेत , ग्रे काली आदि क्रान्तियो को एक साथ चलाने ओर निगरानी रखने और के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जागरूक करने के लिए कृषि नीति का गठन किया गया जिसको  इन्द्रधनुषी क्रान्ति कहा गया है।

धन्यवाद। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagricture@gmail.com

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Monday, 23 March 2020

कोरोनावायरस : प्रभावित भारतीय कृषि बाजार

नमस्कार मेरे ब्लोग पर आप सभी का स्वागत हैं। कोरोनावायरस के कारण प्रभावित हुआ भारतीय कृषि बाजार के बारे में अपनी जानकारी साझा कर रहे हैं।


आजादपुर कृषि उपज मंडी समिति के अधिकारियों ने बताया कि, "कृषि मांग में गिरावट आई है क्योंकि थोक मांग में गिरावट आई है। हालांकि, सब्जियों की अधिक मांग है, जिसमें प्याज, आलू और टमाटर जैसी जीवन शैली में अधिक मांग शामिल हैं।"  बाजारों और रेस्तरां जैसे दिल्ली, पुणे, गुजरात, हैदराबाद आदि से थोक मांग बढ़ने और निर्यात पर अनिश्चितता के कारण सब्जियों, फलों और चीनी जैसे कृषि वस्तुओं की कीमतें 15 से 20% तक गिर गई हैं।  
कोरोनावायरस के कारण भारत में फल सब्जी तेल पेय आदि पदार्थों की कीमतों में वृद्धि हो रही है। जिनका असर आम जनता पर आ गया है। केंद्रीय खाद्य निगम (FCI) के अनुसार, केंद्रीय भंडार में  584.97 लाख टन अनाज की भरपूर मात्रा है।  विश्व में एफएओ की मुद्रास्फीति खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने वैश्विक मुद्रास्फीति और कई देशों में कीमतों में वृद्धि की आशंका व्यक्त की है।  एफएओ के अनुसार, दुनिया में खाद्यान्नों और तिलहनों की कमी नहीं है, लेकिन कई क्षेत्रों में घबराहट के कारण कीमतें बढ़ने का खतरा है।  साथ ही, उनकी आपूर्ति लॉकडाउन से प्रभावित होने की संभावना है। भारत में अब तक 75 जिलो को लोकडाउन कर दिया गया है। 
कृषि और विभिन्न उद्योगों में शामिल किसान जिनमें मुर्गी पालन, मछली पालन आदि शामिल हैं, सरकार से समर्थन मांगने लगे, उनके उद्योगों को पटरी पर लाने में मदद के लिए ऋण के रूप में पैसा दिया जाना चाहिए।  देश भर के व्यापारियों को अफवाहों के कारण बाजारों और उद्योगों को बंद करने के लिए मजबूर किया गया है और जो कृषि-उद्योग चल रहे हैं वे अफवाहों के कारण संघर्ष कर रहे हैं।


खासकर पोल्ट्री उद्योग जो कोरोनोवायरस से संबंधित अफवाहों का सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, जिसके कारण उधोगों के साथ व्यापार और रोजगार भी प्रभावित हुआ है। किसानों ने सरकार से राहत राशि शीघ्र ऋण सहायता की मांग की है।


उद्योग संघों ने सरकार से वित्तीय सहायता और बैंक ऋणों के पुनर्गठन की अपील की है।  "सरकार द्वारा कोरोनोवायरस महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए बनाई गई जागरूकता के कारण, अधिकांश श्रमिक काम के लिए रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं और प्रवासी श्रमिक भी अपने मूल स्थानों पर लौट रहे हैं। यह स्थिति तेज होती है और बड़े पैमाने पर उत्पादन रुकने की संभावना है।"
कृषि मंडियों के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि फलों और सब्जियों की कमी किसी भी तरह से कम नहीं होगी, सरकारी मशीनरी हर स्तर पर पूरी तैयारी कर रही है। 

कोरोनावायरस के कारण बीते दिनों में भारत या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चिकन आदि को छोड़कर कृषि वस्तुओं की मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।  हालांकि, कीमतें गिर गई हैं, कोरोना की आशंकाओं से प्रभावित हैं।  
ऑल इंडिया वेजिटेबल एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अधिकारियों के अनुसार, फलों और सब्जियों का निर्यात मूल्य लगभग 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम से गिरकर 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है।  हालांकि, निर्यात के लिए पैकेजिंग और प्रेषण में कोई कमी नहीं की गई है।  पिछले कुछ हफ्तों के दौरान, थोक चीनी की कीमतों में भी 4-5% की गिरावट दर्ज की गई है।