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Sunday, 19 April 2020

गन्ना : प्रमुख कीट व उपचार

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ना फसल को नुक्सान पहुंचाने वाले मुख्य कीटो के बारे में तथा नियंत्रण उपचार हेतु जानकारी साझा कर रहे हैं। 

हमारे देश में गन्ना मुख्य फसल है। नगदी फसल होने के कारण ही कृषक अन्य फसलें की अपेक्षा गन्ना फसल की बुवाई करना पसंद करते हैं। 
गन्ना ग्रेमीनी कुल के अंतर्गत आता है। गन्ने की फसल को लगभग 200 प्रकार के कीट संक्रमित करने के लिए को जाना जाता है। इन कीटो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 35-45% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन कीटो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए  इन कीटो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।


गन्ने की फसल में अच्छा उत्पादन करने के लिए गन्ने के कीटो के बारे में जानकारी तथा उपचार हेतु सहायक जानकारी अति आवश्यक हो जाता है। कीट नियंत्रण करने से फसल की पैदावार और बढ़ोतरी का योगदान 50-60% के अंतर्गत आता है। गन्ने की खेती के लिए कुशल कीट प्रबन्धन ही अति आवश्यक हो जाता है। 

न्ने में कीट गन्ना बुवाई से लेकर फसल की कटाई तक फसल में भूमिगत कीट , पत्ती एवं तना चूसक कीट , पत्ती खाने वाले कीट आदि कीट विभिन्न अवस्थाओं में फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। यदि जिनका समय रहते उपचार हेतु उपाय नहीं कराते हैं तो गन्ना फसल को नष्ट कर देते हैं। जिसका सीधा प्रभाव फसल की पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है। 

गन्ने की प्रमुख कीटो की जानकारी एवं रोकथाम 

पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना  बीज की बुआई से फसल को संक्रमित करते हैं। 
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य कीट व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है। 

मुख्य कीट 

• दीमक 

• सफेद गिडार ( व्हाईट ग्रब )

• मिली बग 

• अंकुर बेधक ( कन्सुआ )

• चोटी/शीर्ष बेधक ( टॉप बोरर )

• तना बेधक ( रूट बोरर )

• जड़ बेधक ( शूट बोरर )

• पायरिला

1. दीमक -: 

ये सामाजिक कीड़े हैं जो झुंडो में रहते हैं। वर्ष भर गन्ने की फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। और अधिकतर मानसून के समय में मिट्टी में प्रवेश करते है। जब दीमक गन्ने पर हमला करती है, तो संक्रमित पौधों की पुरानी पत्तियां पहले सूखने लगती हैं और गन्ने को खोखला कर मिट्टी भर जाती है।  पौधों की पैदावार में भारी कमी होती है। अगर दीमक के संक्रमण का समय रहते पता नहीं लगाया गया और नियंत्रित किया गया तो पूरी फसल नष्ट हो सकती है। 

दीमक कीट

दीमक नियंत्रण के उपाय हेतु : 

 गन्ने में दीमक के नियंत्रित हेतु  निम्नलिखत नियंत्रण उपायों को अपनाया जा सकता है:

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं। 

• गन्ने की फसल में दीमक का प्रकोप कम करने के लिए खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहना चाहिए।

• रोपण के समय, फर्र में बीज को लेसेन्टा @ 150 ग्राम / एकड़ के साथ 400 लीटर पानी में भीगना चाहिए। 

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , इमिडाक्लोपरिड 1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

•  रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।

2. सफेद गिडार/ ग्रब ( व्हाईट ग्रब ) -:  

सफेद ग्रब गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है, सफेद ग्रब भूरे रंग का झुर्रीदार होता है। फरवरी से अक्टुबर तक अधिक प्रकोप होता है।  और जब अटैक करते हैं तो गन्ने की जड़ों और गुठलियां खाने लगती है जिससे पत्तियां धीरे धीरे पीली पड़ने लगती है और फसल का बड़ा हिस्सा सूखने पर मरने लगता है।


सफेद गिडार के  नियंत्रण के उपाय हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं। 

• गन्ने के बीज को 125 लीटर पानी में कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड) @ 125 मिली / एकड़ के साथ उपचारित किया जा सकता है।  

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट / मोनोक्रोटोफोस , इमिडाक्लोपरिड 1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए।

• रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


3. मिली बग -:

 मिली बग के कीड़े मुख्य रूप से आम कीट हैं, लेकिन गन्ने में उनके संक्रमण को मामूली से गंभीर रूप में देखा गया है।

यह गुलाबी रंग की होते है और सफेद मोमी कोटिंग के साथ एक अंडाकार अच्छी तरह से खंडित शरीर होता है।  मिली बग युवा गन्ने के निचले नोड्स में पाए जाते हैं और पत्ती म्यान द्वारा संरक्षित होते हैं। निम्फ और वयस्क फसल को चूसते हैं और फसल की जीवन शक्ति को कम करते हैं, जिस पर कालिख का साया बढ़ता है, पत्तियां काली दिखाई देती हैं और गन्ने की वृद्धि मंद होती है।

मिली बग

 मिली बग के नियंत्रण उपचार हेतु -:   

प्रारंभिक चरण में इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है जबकि बाद के चरण में इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और पूरे गन्ना क्षेत्र को नुकसान हो सकता है।  प्रारंभ में, नीम के तेल का उपयोग करें @ 250 मिली लीटर इमिडाक्लोप्रिड @ 375 मिली / हेक्टेयर या नीम के तेल + एसेटामिप्रीड @ 250 ग्राम / एकड़ के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

• मिली बग के नियंत्रण के लिए कुशल पेड़ी प्रबन्धन कर फसल के अवशेषों को खेत से बाहर निकल दिया जाना चाहिए। 

• गन्ने के बीज को 125 लीटर पानी में कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड) @ 125 मिली / एकड़ के साथ उपचारित किया जा सकता है।

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


4. अंकुर बेधक ( कन्सुआ ) -: 

अंकुर बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है यह गन्ने के बुवाई के 1-2 माह में ही दिखने लगता है। जिसका प्रकोप मार्च से जून तक अधिक बढ़ जाता है। इसकी सूड़ियां गन्ने के प्ररोह में जमीन के नीचे वाले भाग में छिद्र बनाकर प्रवेश करते है और क्षतिग्रस्त कर देती हैं गन्ना पौधे की उपरी पत्ती सुखकर काली पड़ जाती है। सुखी हुई पत्ती को गोफ आसानी से खिंचने पर सडी हुई बाहर आ जाती हैं और विषैली गन्ध आती है। प्रारंभिक चरण में इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है जबकि बाद के चरण में इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और पूरे गन्ना क्षेत्र को नुकसान हो सकता है।


अंकुर बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• यदि गन्ने की फसल में अंकुर बेधक के लक्षण दिखाई देते हैं तो खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहे।

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  फोरेट 10 जी / फेवनलरेट 0.4 % धूल क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

•  रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


5. चोटी/शीर्ष बेधक ( टॉप बोरर ) -: 

चोटी बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है।  आमतौर पर शीर्ष से दूसरे से पांचवें पत्ते तक पहुंचता है। पत्तियों पर शॉट छोटे छोटे लाल भूरे लाल छेद के रूप में दिखाई देती हैं। तथा पत्ती को खिंचने पर इसे आसानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। जिसके प्रकोप से पूरी फसल प्रभावित हो जाती है। जिससे गन्ने की पैदावार के साथ ही चीनी की मात्रा को कम करता है। 


चोटी/शीर्ष बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• गन्ना फसल में यह सुनिश्चित करें कि खेत में सिंचाई का पानी ना ठहराया जाए। उचित जल निकासी की व्यवस्था कर चोटी बेधक के नियंत्रण में सहायक होता है। 

• मई के अंतिम सप्ताह में, कोरेगन @ 150 मिलीलीटर प्रति एकड़ 400 लीटर पानी में घोलकर सूखे खेत में पौधे के जड़ क्षेत्र के पास और कीटनाशक को गीला करने के 24 घंटे के भीतर सिंचाई करें।  

• यदि भीगना संभव नहीं है, तो कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जून के मध्य में  जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

•  रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें।


6. तना बेधक ( रूट बोरर ) -: 

तना बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है। इसकी सुंडी गन्ने के किसी भी भाग से प्रवेश हो जाती है। और एक गन्ने में बहुत ही सुंडी हो जाती है।  यह अगस्त से फ़रवरी में छोटे गन्ने के पौधों को नुक्सान पहुंचाता है। जिसका सीधा असर फसल की बढ़ोतरी पर पड़ता है। पत्तियों पर छोटे छोटे छिद्र बन जाते हैं। और ग्रस्त पत्ती पीली नारंगी रंग की परत जैसे हो जाती है। जिसका समय रहते उपचार नहीं कराते तो पूरी फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं। 


तना बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• बुवाई के लिए स्वस्थ गन्ने के टुकड़ों का चयन करना चाहिये ।

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  फोरेट 10 जी / फेवनलरेट 0.4 % धूल क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

• कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

 • रोपण के समय, अच्छी तरह से विघटित गाय के गोबर के 100 किलोग्राम और नीम केक के 100 किलोग्राम को ठीक से मिलाएं और रोपण के समय फसल में उपयोग करें। 


7. जड़ बेधक ( शूट बोरर ) -: 

जड बेधक गन्ने में एक बहुत ही गंभीर कीट है। इसकी सुंडी गन्ने के जड़ से प्रवेश कर पत्तियों को क्षति पहुंचाती है , जिसके कारण पत्तियों के किनारे उपर से नीचे पीली पड़ने लगती है। जब गन्ने को उखाड़ते है तो जड़ में छिद्र किये हुए सुंडी पाई जाती है।


जड़ बेधक के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• कीटो के संक्रमण को रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• गन्ना बुवाई के तीन माह में ही मिट्टी चढ़ाएं जिससे जड़ बेधक के नियंत्रण करता है। 

• यदि गन्ने की फसल में जड़ बेधक के लक्षण दिखाई देते हैं तो खेत को सुखने न दे सिंचाई करते रहे। 

• कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सुखे रेत में मिलाकर जुलाई के पहले सप्ताह से पहले उपयोग करें। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है।


8• पायरीला -:

  इसे आमतौर पर लीफ हॉपर और गन्ने का फुदका  (पाइरिला पेरपुसिला) के रूप में जाना जाता है, ये हल्के भूरे रंग के होते हैं।  मई-जून में उच्च आर्द्रता, भारी खाद और सिंचाई कीट के गुणन के पक्ष में है। निम्फ और वयस्क पत्तियों से चूसते हैं।  गंभीर मामलों में, पत्तियां मुरझा जाती हैं और सूख जाती हैं। पौधे बीमार और धुंधला दिखाई देते हैं। जिस पर कालिख का सांचा विकसित होता है। सुक्रोज सामग्री कम हो जाती है। 

पाइरिला के नियंत्रण उपचार हेतु -: 

• फसल में पाइरिला रोकने के लिए कुशल फसल चक्र अपनाएं।

• नियंत्रण के लिए निम्न किसी एक रसायन को  क्लोरिपाइरिफास , क्वीनालफॉस 5 ली , रोकेट / मोनोक्रोटोफोस , इमिडाक्लोपरिड1 ली0 , बाइफेन्धिन 0 . 800 लीo को 75 किग्रा सूखे रेते में मिलाकर किसी एक उपरोक्त कीटनाशक रसायन को मिलाकर बुवाई के समय नाली में गन्ने के टुकड़ों पर प्रयोग में लाए। 

• अंडे वाले पत्तों को तोड़कर नष्ट कर पाइरिला के नियंत्रण में सहायक होता है। 

• रोपण के समय, बीज को डैंन्टोसु   Dontatsu @ 150 ग्राम / एकड़ में 400 लीटर पानी में भीगने का इलाज किया जा सकता है। 

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको यह लेख से उचित मिली हैं। अपने सुझाव आदि हमें कमेन्ट करें या हमें लिखें updateagriculture@gmail.com


और देखें गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार
            गन्ना : पेड़ी प्रबन्धन
             फसल चक्र

Thursday, 9 April 2020

फसल चक्र

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम फसल चक्र के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं। 

फसल चक्र क्या है? 
 फसल रोटेशन खेत के विभिन्न क्षेत्रों में फसल बोने की एक तकनीक है, जहाँ एक ही खेत में साल-दर-साल अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं। ताकि मिट्टी में अच्छे गुणों को संरक्षित किया जा सके और मिट्टी स्वस्थ और उपजाऊ बनी रहे। इसे फसल चक्र कहा जाता है।



फसल चक्र के सिद्धांत
 1 रेशेदार जड़ प्रणाली के साथ पालन किया जाना चाहिए। यह मिट्टी से पोषक तत्वों के उचित व समान उपयोग में मदद करता है।  
2. फलीदार फसलें को गैर-फलीदार फसलों के बाद उगाई जानी चाहिए।  फलियां मिट्टी को अवशोषित करती हैं और अधिक अकार्बनिक सामग्री जोड़कर मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करती हैं। 
 3. कम विस्तृत फसलों के बाद अधिक विस्तृत फसलों का पालन करना चाहिए।
 4. एक आदर्श फसल रोटेशन वह है जो परिवार के खेत श्रम को अधिकतम रोजगार प्रदान करता है, कृषि मशीनरी उपकरण कुशलता से उपयोग किया जाता है।  
 5.  चयनित फसलों को मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।
6. फसलों का चयन किसान की वित्तीय स्थितियों के अनुरूप होना चाहिए। 

 फसल रोटेशन के लाभ
 • मृदा उर्वरता को वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करके बहाल किया जाता है।
• मृदा भौतिक-रासायनिक गुणों में सुधार तथा गतिविधि को प्रोत्साहित करती है।
• विषाक्त पदार्थों के संचय से बचा जाता है।  
• मृदा को क्षरण से बचाया जाता है। 
• कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करता है।
• खेतों में खरपतवारों को नियंत्रित करता है। 
• मृदा की उर्वरता को बढ़ाता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। 
 • उथली और गहरी जड़ वाली फसलें मिट्टी से अलग-अलग गहराई पर पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं।  
• मृदा कीट जो पौधों के एक परिवार पर निशाना साधते  हैं, हर साल भोजन के स्रोत में बदलाव के रूप में बाधा बन जाते हैं।  
• फसल की पैदावार बढ़ाता है - यह पाया जाता है कि फसल रोटेशन से एक ही मौसमी फसल से प्राप्त फसल में वृद्धि होती है।  
• मिट्टी के पोषक तत्वों में वृद्धि- यह मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों को जोड़ने या अवशोषित करने में मदद करता है।  
• वर्षा का प्रभाव जो पानी से मिट्टी के कटाव को कम करता है और पानी से सामान्य कटाव करता है क्योंकि पौधों की जड़ें मिट्टी की ऊपरी परत को एक साथ रखती हैं।




Tuesday, 7 April 2020

गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ने की खेती में आने वाली मुख्य बीमारियों तथा उनके लक्षण व उपचार हेतु सहायक जानकारी साझा कर रहे हैं।

गन्ना 
गन्ना ग्रेमीनी कुल के अंतर्गत आता है। गन्ने की फसल को लगभग साठ प्रकार की बीमारियां संक्रमित करने के लिए को जाना जाता है।
इन रोगो का सीधा प्रभाव फसल के अंकुरण , बढ़वार पर पड़ जाता है। जोकि अलग अलग समय तथा अनुकूल परिस्थितियों में फसल को नुक्सान पहुंचा कर उपज में 20-25% की कमी हो सकती हैं। कृषक को इन बीमारियो के फसल पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए  इन बीमारियो के बारे में जानकारी प्राप्त होना अनिवार्य है।

फंफूदी , जिवाणु , वायरस इन तीन प्रकार से उत्पन्न होते हैं तथा फसल को पानी , बीज और मृदा के माध्यम से प्रभावित करते हैं।जोकि पिछली फसल के अवशेषों से या अस्वस्थ गन्ना  बीज की बुआई से और खेत में पानी के ठहरने से फसल को संक्रमित करते हैं।
गन्ना फसल में आने वाली मुख्य बीमारियों व उनके लक्षण तथा बचाव हेतु उपचार के लिए की गई सिफारिशे आदि कृषक के लिए यह लेख साझा कर रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से है।
मुख्य रोग       -         रोग कारक

लाल सड़न  - कोलटोट्राइकम फाल्काटम ( फंफूदी)

विल्ट ( उटका रोग) - सिफैलो स्पोरियम (फंफूदी)

स्मट (कंडुआ रोग) - अस्टीलागो सिटामिनी (फंफूदी)

पोक्खा बोइंग - जीनस फ्यूजेरियम

ग्रासीय शूट - फाइटोप्लाज्मा (जिवाणु)

लाल सड़न ( रेड रॉट ) : यह गन्ने की बहुत ही घातक फंफूद जनक बीमारी है।  गन्ने का लाल सड़न कोलटोट्राइकम फाल्काटम वेंट फंफूदी जनक के कारण होता है। इसे गन्ने का कैंसर और गन्ने का काना रोग भी कहा जाता है।   जोकि गन्ने की फसल को बीज , मृदा और जल के ठहरने के कारण संक्रमित करते हैं। फंफूद जनक रोग गन्ने की फसल में आने पर पूरी फसल व प्रजाति को क्षति पहुंचाने के साथ ही शुगर की मात्रा को भी प्रभावित करता है।

लाल सड़न रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी तीसरी-चौथी पत्ती सुखकर पीली पड़ने लगती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों पर लाल-भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं।
• संक्रमित गन्ना आसानी से टूट जाता है।
• जब गन्ने को काटते हैं तो गन्ना अंदर से सड़ा हुआ निकलता है और उसमें से एल्कोहल और सिरके जैसी गन्ध आती है।
• यह जुलाई से फसल के अंत तक लगता है। और फसल को नुक्सान पहुंचाता है।

लाल सड़न रोग के उपचार हेतु :
• गन्ने के लाल सड़न बीमारी का कोई प्रभावी रोकथाम का इलाज नहीं हुआ है।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का उकटा रोग ( विल्ट) : इसे गन्ने का सूखा रोग भी कहते है। यह सिफैलो स्पोरियम फंफूदी जनक
के कारण होता है।

गन्ने का उकटा रोग के लक्षण :
• संक्रमित गन्ने की ऊपरी पत्ती सूखने लगती है।
• पत्तियों पर सफेद-भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• यदि गन्ने को नोड से तोड़ते हैं तो टूटता नही लचक जाता है।
•  गन्ने के अन्दर से लाल मटमैली धारियां दिखाई देती है जिनमें कोई गन्ध नहीं आती।
• यह गन्ने की फसल में अक्टुबर से फसल के अंत तक लगता है।

गन्ने का उकटा रोग के उपचार हेतू :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का कण्डुआ रोग ( स्मट ) : यह रोग अस्टीलागो सिटामिनी फंफूद जनक है। यह गन्ने की फसल में बुवाई के 2-3 माह लगकर फसल की बढ़ोत्तरी को नुक्सान पहुंचाता है।

कण्डुआ रोग के लक्षण : 
• फसल के शुरुआत में ही 2-3 महिने में दिखाई देता है।
• संक्रमित पौधे की पत्तियां सुख कर काली पड़ कर चमक दिखाई देती है।
• संक्रमित पौधे के पौधे की पत्तियों पर काले भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
• अपने अनुकूल परिस्थितियों में पूरी फसल के प्रत्येक पौधे को संक्रमित कर क्षति पहुंचाता है।
• यह अप्रेल से जून तथा अक्टुबर से नवम्बर तक रोग का अधिक प्रकोप होता है।

कंण्डुआ रोग के उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में क्युनालफॉस 25 ई. सी. 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में लगाएं।
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने की पत्तियां

गन्ने का पोक्खा रोग ( पोक्खा बोइंग ) :
 पोक्खा बोइंग गन्ने का फंफूद जनक रोग है। जो गन्ने की फसल में बढ़ोतरी और पैदावार को नुक्सान पहुंचाता है ।

पोक्खा बोइंग के लक्षण :
• पोक्खा बोइंग का प्रकोप जूलाई से अक्टुबर के मध्य अधिक बढ़ जाता है।
• संक्रमित गन्ने की शीर्ष पत्तियां पीली व सफेद होने के बाद लाल भूरे रंग के होकर टूट जाती है।
• संक्रमित गन्ने का शीर्ष भाग पतला होकर खत्म हो जाता है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां आपस में लिपटे हुए होती है।
• संक्रमित गन्ने की उपरी पत्तियां सिकुड़ कर सुखने लगती है। 
• पौधे की वृद्धि रूक जाती है।

गन्ने का पोक्खा रोग उपचार हेतु :
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
• प्रति एकड़ कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (बालिटाक्स, ब्लू कॉपर) को 300 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
• जुलाई के मध्य में नीम केक 15-20 कुं/हैं की दर से फसल से लगा कर मिट्टी चढ़ाएं।
• अगस्त में कॉपर ओक्सीक्लोराइ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• मिट्टी को ट्राईकोडरमा जैव फंफूदनाशी से उपचारित कर मृदा परीक्षण करा कर ही सही खाद उवर्रक पोषक तत्वों को प्रयोग में लाना चाहिए।

गन्ने का घासीय प्ररोह रोग ( ग्रासी शूट ) : यह फाइटोप्लाज्मा नामक जिवाणु जनित रोग है। यह गन्ने का पत्तियों का पीत रोग से भी जाना जाता है।

घासीय प्ररोह रोग के लक्षण :
• पत्ती झुन्डो में निकलती हैं और अधिकतर पेड़ी फसल को नुक्सान करती है।
• संक्रमित गन्ने की पत्तियों में अचानक से फुटाव होकर झाड़ू के आकार में आ जाती है।
• रोगी पौधे से पतले पतले प्ररोह निकलने लगते हैं।
• रोगी पौधे की पत्तियां सफेद पीलेपन में होकर छोटी हो जाती है।
घासीय प्ररोह रोग के उपचार हेतु :
• स्वस्थ बीज का चयन कर बीज गन्ने के टुकड़ों को बावस्टिन या कार्बनडाजिम के 0.25 प्रतिशत घोल में 30 मिनट तक डुबोकर बुवाई करना चाहिए।
• बीज गन्ने को आर्द वायु उष्मोपचार संयंत्र में 54 डिग्री से० पर 2.5 घटे तक उपचारित कर बुवाई करना।
• रोगी पोधो के मेड़ को उखाड़ कर वहां ब्लिचिगं पाउडर डाल दिया जाना चाहिए।
• फसल चक्र अपना कर रोगरोधी किस्मों का चयन करें।

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको यह लेख से जानकारियां मिली हैं। हमारी त्रृटि अपने सुझाव तथा मार्गदर्शन आदि के लिए हमें लिखें updateagriculture@gmail.com





Thursday, 2 April 2020

गन्ना : पेड़ी प्रबन्धन

नमस्कार। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम गन्ना फसल में उन्नत पेड़ी प्रबन्धन के बारे में जानकारी साझा कर रहे हैं।
गन्ना पेड़ी प्रबन्धन
हमारे देश में गन्ना मुख्य फसल है। और अच्छा उत्पादन करने के लिए गन्ना पेड़ी का योगदान 50-60% के अंतर्गत आता है। गन्ने की खेती के लिए कुशल पेड़ी प्रबन्धन ही अति आवश्यक हो जाता है। 

गन्ना 

कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए महत्वपूर्ण सस्य गतिविधियां 
गन्ने की फसल में पेड़ी गन्ने में बचत की फसल होती है। जिसमे उत्तम पेड़ी प्रबन्धन करना अनिवार्य हो जाता है। बचत की करें तो बीज की बचत, भूमि की जुताई की लागत, पेलवा, बुवाई और फसल की सुरक्षा आदि में प्रति हेक्टेयर कम लागत है। जिसका पेड़ी फसल अधिक लाभ देती है।
खाद, उर्वरक , सिंचाई, निराई और कीट नियंत्रण आदि की समयबद्ध व्यवस्था के कारण गन्ना पेडी की पैदावार में अधिक वृद्धि होती है।पेड़ी गन्ने की फसल के लिए समय-समय पर कृषि गतिविधियाँ को अपनाने के लिए जोर दिया जाना चाहिए।

सतह से कटाई: - गन्ने की फसल के लिए आवश्यक होता है पौधे गन्ने की कटाई तेज धार वाले हथियार से गन्ने की जमीन की सतह से करनी चाहिए। । जिसके परिणामस्वरूप उपज में बढ़ोतरी के साथ स्वस्थ और निरोग प्रजाति विकसित होती है क्योंकि कोई भी गन्ना प्रजाति अपनी स्वस्थ पेड़ी और कुशल पेड़ी प्रबन्धन के साथ ही उत्तम प्रर्दशन करती हैं।

ठूंठ कटाई: - पेड़ी गन्ने की फसल के लिए और गन्ना पौधा वृद्धिऔर समान आकार के लिए कृषि गतिविधियाें में गन्ने की उपर बढ़ने वाली शाखाओं को  सतह से समान रूप से काटा जाता है, और ध्यान देने की बात है कि ठूंठ भूमि की सतह से उपर न रहे। परिणामस्वरूप  जमीन की सतह के उपरी आंख के फुटकर झुंड में सतह के नीचे वाली आखो में बहुत ही कम फुटाव होगा ऊपर तेज होगी। और बाद में भी उपरी आंखों में एक पौधा बाद में पोषक तत्वों और संरक्षण के लिए नहीं होना चाहिए।


जड़ों की कटाई - छंटाई और निराई
- पेड़ी गन्ने के खेतों की देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करना आवश्यक है, पुरानी जड़ों को तोड़ दें ताकि पुरानी जड़ों को तब तक बदल दिया जाए जब तक कि नई जड़ें बदल न जाएं। जिससे मृदा से पौधे की जड़ों को पोषक तत्व मिलते रहे। यदि पुरानी जड़ों को नहीं तोडते तो नई जड़ों की स्थापना में बहुत समय लगने के कारण पौधै की वृद्धि प्रभावित हो जाती है।

बड़े पोंगले की व्यवस्था : बड़े पोंगलो पर कीट व्याधियों के प्रकोप का खतरा बढ़ जाता है। खेत में निकले हुए बड़े पोंगलो को काट देना चाहिए और परिणामस्वरूप इससे फसल की पोषकता बनी रहे।

रिक्त स्थान की पूर्ति : कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए रिक्त स्थान की पूर्ति होना अनिवार्य हो जाता है। खेत में कहीं-कहीं पर गन्ना फुटाव नहीं पाया जाता है तो उनके स्थान पर गन्ने की उपरी हिस्से की आंख के टुकड़ों को 0.1% बॉवस्टीन के घोल से उपचारित करके खाली स्थानों को अवश्य भर देना चाहिए।  रिक्त स्थान की पूर्ति कुशलता से करने पर गन्ने की फसल की बराबरी से पैदावार और  सिंचाई और खाद उर्वरक का समुचित प्रबंधन में बहुत कारगर साबित होता है।

पेड़ी फसल सुरक्षा का संरक्षण: - पूर्व-कटाई में  कीटों का प्रकोप होता है जैसे कि भूमिगत कीट जैसे दीमक या सफेद ग्रब (गुबरेला)।  जो रोपण के समय निराई करते हुए इमिडाक्लोरप्रिड जैसे कीटनाशक रसायनों का उपयोग 1000 मिलीग्राम / हेक्टयर सूखा हुआ बालू का प्रयोग कर सिंचाई अवश्य करें। और दूसरी बार अगस्त या सितंबर में खड़ी फसल करना में भी करना नियंत्रित करने के लिए आवश्यक हो जाता है।  ये कीट गन्ना की प्रारंभिक वृद्धि को प्रभावित करते है जिसका जून से सितंबर तक और भूमिगत जड़ों को बुरी तरह से खाने से बचाव किया जा सकता है। जोकि अच्छे फसल उत्पादन के लिए इसका नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है।  अन्यथा, खड़ी फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।  उपरोक्त कीटों का प्रकोप सभी क्षेत्रों में भयानक बढ़ता जा रहा है।  इसलिए उपरोक्त कीटों को नियंत्रित और प्रबंधित करना बहुत महत्वपूर्ण है।

पत्ती काटने या कीट चूसने वाले कीटों पर नियंत्रण: -
गन्ने की फसल में मिलीभगत , चोटीबेधक ,काले चिकटे आदि कीटो का अधिक प्रकोप है, तो सूखी पत्ती को जलाकर नष्ट कर दें।  जिसके कारण कीट रोग के अंडे भी खेत में नष्ट हो जाएंगे।  सूखे पत्ते को जलाने के 24 घंटे के भीतर खेतों को पानी देना चाहिए। पेड़ी फसल के शुरुआत में कीटों आदि से बचाने के लिए पौधे की जड़ों में 15 दिनों के अंतराल पर दो बार किसी कीटनाशक रसायन का छिड़काव जैसे न्यूवन + प्रोफिनोफोस 40% + साईपरमैथॉन 4% (रॉकेट) या मोनोक्रोटोफ़ॉस आदि योग संयंत्र गन्ने की कटाई के 15 - 20 दिनों के अंतराल पर  करना चाहिए और तत्काल प्रकोप से बचाया जा सके।

खाद उवर्रक व पोषक तत्व : कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए बहुत ही आवश्यक होता है कि पेड़ी गन्ने में पोषक तत्वों की कमी नहीं आनी चाहिए। जब पौधे गन्ने को काटते हैं तो उससे उत्पन्न होने वाली पेड़ी गन्ने की नई जड़ों को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
अच्छी पेडी की फसल लेने के लिए संतुलित उर्वरकों की आवश्यकता होती है। और सामान्य पौधा फसल पेड़ी की तुलना से डेढ़ गुना अधिक प्रयोग होता है। निम्न तालिका के अनुसार, प्रति  प्रति बीघा मुख्य और सक्षम तत्व देने की सिफारिश की गई है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक का उपयोग अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत आवश्यक है।

पोषक तत्व सारणी

जिस खेत में गन्ने की पेड़ी ली जानी है, वहाँ खड़े पौधे गन्ने को 20-25 दिन पहले 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पोटाश के उपयोग कर सिंचित किया जाना चाहिए, ताकि खड़े गन्ने में स्वस्थ पोखरों का फुटाव वह संख्या अधिक हो।
गन्ने की कटाई के बाद पोगलो में कीट जैसे ब्लैक बग , मिली बग आदि कीट पोंगल पर पैदा हो जाते हैं। । जिनका रासायनिक कीटनाशक  के प्रयोग से नियंत्रण आवश्यक हो जाता है।

 खरपतवार नियंत्रण: -  कुशल पेड़ी प्रबन्धन के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। जोकि गन्ने की बढ़वार में उपस्थित रह कर पोषक तत्वों की मात्रा कम कर देते हैं और पेड़ी वृद्धि प्रभावित हो जाती है। जैसे मोथा , पत्थरचट्टा , कृष्णनील , सत्यानाशी , सॉठ , बथुआ , दूब घास आदि खरपतवार रोग व कीटों को शरण देते हैं।

खेत को खरपतवारों से मुक्त व सुरक्षा रखने के लिए फसल की  निराई-गुड़ाई लगातार करनी चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का संरक्षण , सिंचाई की नमी संरक्षण होता है। और आखिरी जुताई के समय पेड़ी गन्ने में मिट्टी अवश्य चढ़ाएं , जिससे फसल को काफी हद तक गिरने से रोका जा सकता है।  मेढ़ों के बीच में खाद डालने के बाद ही सूखी पत्तियों को बिछाकर खरपतवार को नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि पत्तियों को पहले से ही खेत में छोड़ देना बहुत गलत है, जिसके कारण उपरोक्त कृषि कार्य ठीक से नहीं हो पाते हैं।

धन्यवाद। आशा करते हैं कि आपको पेड़ी प्रबन्धन के लिए बहुत ही अच्छा लेख लगा है। अपने सुझाव आदि हमें लिखें updateagriculture@gmail.com


और देखें गन्ना : प्रमुख रोग व उपचार
           गन्ना: प्रमुख कीट व उपचार